Hindi, asked by anuraggautambrill, 10 months ago

व्यवचारी भावों की संख्या लिखिए

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Answered by missmaahi10
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Answer:<font color= "blue">Hey mate answer of your question is given below by me....

Explanation..

काव्य में रसों की संख्या को लेकर आम सहमति नौ रसों पर रही, पर भरत मुनि के बाद भारत के अन्य मुनि इस संख्या को घटाते-बढ़ाते रहे। हर रस का एक स्थाई भाव होता है जिसके फलने-फूलने और परिपूर्ण होने पर रस परिपक्व होता है। मनुष्य के अंदर एक स्थाई भाव है- ‘लालच’। पता नहीं इसकी ओर मुनियों का ध्यान क्यों नहीं गया? इस स्थाई भाव का कोई रस स्थापित ही नहीं किया गया। मुनियों ने इसकी उपेक्षा संभवत: इसलिए की हो कि ‘लालच’ एक ऐसा स्थाई भाव है जो कभी परिपूर्ण हो ही नहीं सकता। यह भी हो सकता है वे अपनी नैतिकतावादी दृष्टि के कारण मनुष्य को इतना बुरा न दिखाना चाह रहे हों।

रस कितने नैतिक

देखना होगा कि दूसरे रस कितने नैतिक हैं। श्रृंगार रस का स्थाई भाव ‘रति’ बताया गया, जिसके रहते आज भी बंगले के पीछे और बेरी के नीचे कांटे लगते रहते हैं। वीर रस का स्थाई भाव ‘उत्साह’ बताकर युद्धों को मान्यता दी गई। रौद्र रस के ‘क्रोध’ ने भीषणतम परमाणु युद्धों की संभावना के द्वार खोले हुए हैं। वीभत्स रस के स्थाई भाव ‘जुगुप्सा’ से सिद्ध होता है कि मनुष्य मारकाट के बाद सडे़-गले दुर्गन्धयुक्त पर्यावरण में भी आनंद ले सकता है। अद्भुत रस का ‘कौतूहल’ उस आनंद की श्रीवृद्धि करता है। भयानक रस का स्थाई भाव ‘भय’ बताता है कि सब कुछ के बावजूद मनुष्य निहायत ही डरपोक किस्म का प्राणी है। स्थिति यहां तक गंभीर है कि हास्यरस पर रोना आता है और करुण रस पर हंसी। वात्सल्य रस का करिश्मा देखिए कि यह रस संजय-करिश्मा को लेकर कोर्ट पहुंच जाता है।

और भक्ति रस धार्मिक चैनलों से कूद-कूद झर रहा है और शांत रस की शांति हर रहा है।

आर्थिक उदारीकरण के इस युग में अर्थ रस, अर्थात् धन-संपत्ति से उत्पन्न होने वाले रस पर विमर्श होना चाहिए, जिसका स्थाई भाव है ‘लालच’। जैसे ही पैसा दिखाई देता है, चाहे यार से मिला हो या पगार से, नैतिकता से मिला हो या व्यभिचार से, रस देता है, आनंद देता है। यह ‘लालच’ ही है जो मनुष्य की सारी कामनाओं के मूल में एक अनंत हॉर्सपावर की मोटर के समान निरंतर घूमता रहता है। पि र इसको मुनियों ने क्यों नहीं माना?

माना कि इस रस में स्थाई भाव से ज्यादा महत्व संचारी भावों का है। संचारी भाव या व्यभिचारी भाव, जो पल-पल पर बदलते हैं, आते-जाते रहते हैं। शास्त्रकारों ने इनकी संख्या तेतीस बताई है।

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