Economy, asked by ashadsheikh3496, 2 months ago

व्यवहार तोल संकल्पना स्पष्ट करा

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Answered by BiswaShresikha
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आप अपने आस-पतास देखें ्ो पताएँगे कक शहिी औि ग्तामीण दोनयों बताज़ताियों में ही उतपतादयों कताकनमता्भण औिकबक्रीकनिं्ि बढ़्ी ितािही है। हम सभी ्यह ितान्ेे हैं कककनमता्भ्ता अचछी गुणवत्ता वताले उतपतादयों की आपूक््भके  कलए उत्िदता्यी हो्े हैं औि्यकद कोई समस्यता हो ्ो उपभोक्ता को उसकी कशकता्य् किने कता अकधकतािहो्ता है। कनमता्भ्ता उपभोक्ताओं/ ग्ताहकयों को अनदेखता नहीं कि सक्े। उपभोक्ताओं की बढ़्ी संख्यता्थतावस्ुओं औि सेवताओं के  उप्योग की मतात्ता बढ़ने के  सताथ, कनमता्भ्ता/आपूक््भक्ता्भ/सेवता प्रदता्ता्ये समझने लगे हैं कक ‘उपभोक्ता’ कता सममतान औि उनहें सं्ुषट किनता महतवपूण्भ है, चूँकक कंपनी की प्रक्ष्‍ता औि उसके  लताभयोंकताकनधता्भिण उपभोक्ता की िता्य पि ही आधतारि् हो्ता है। भताि् अलपकवककस् से कवकतासशील अथ्भव्यवसथतामें रूपतां्रि् हो िहता है। इसकता अकधकतांश श्रे्य औद्ोगीकिण औि वैशवीकिण को कद्यतािता सक्ता है। इन आकथ्भक परिव््भनयों ने क्र्य शकक् बढ़ताने के  सताथ िीवन स्ि को बेह्ि बनता्यता है। हम एक ‘वैकशवक ग्ताम’ में िह िहे हैं औि वैकशवक बताज़ताि की चुनौक््ययों कता सतामनता कििहे हैं। ‘वैकशवक अथ्भव्यवसथता’ की कदशता में बढ़्े कदम उपभोक्ताओं के  कलए वैकशवक नज़रिए को आवश्यक बनता्े हैं औि वे महज़ मूकदश्भक नहीं बने िह सक्े। उनहें अपने कल्यताण को सुकनकशच् किने के  कलए एक प्रगक्शील बल के  रूप में उभिनता होगता। उनहें आकथ्भक ्ंत् औि व्यकक््ययों के  एक-दूसिे के  सताथ, व्यवसता्य औि सिकताि के  सताथ पिसपि संबंधयों को समझनता होगता। आि के  उपभोक्ता के  कलए स्क्भ, ितागरूक औि पूिी ितानकतािी िखने वतालता उपभोक्ता बननताआवश्यक है। इसकलए उपभोक्ता कशक्षता औि संिक्षण आि के  उपभोक्ता के  कलए महतवपूण्भ बन गए हैं।

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