Hindi, asked by joel1008, 10 months ago

vaani ka sadupyog composition in hindi​

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Answered by anishakumari87
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वाणी का सदुपयोग

एक गाँव में तीन दोस्त रहते थे। जिनका नाम राम, श्याम, और मोहन था। तीनों बचपन से एक ही कक्षा में पढ़ते थे। पढ़ने में तीनों होशियार थे। अतः अगली कक्षा में साथ ही पास होकर पहुँच जाते। इसीलिये दोस्ती और भी गहरी हो गई। किन्तु तीनों के घर का वातावरण अलग-अलग था। राम के पिता अनाज का व्यापार करते थे। मोहन के पिता की शराब की दुकान थी। अंग्रेजी तथा देशी दोनों तरह की शराब का ठेका इस गाँव का प्रायः उन्हीं के पास होता। पैसों की तीनों दोस्तों में से किसी के पास कमी न थी। प्रायः तीनों मिल-जुल कर खर्च करते। खाते-पीते तथा खेलने-कूदने में मस्त रहते। पढ़ने के समय मन लगाकर पढ़ते और अच्छे नम्बरों से पास होते।

केवल दूसरों के साथ व्यवहार करते समय कुछ अलग-अलग ढंग से व्यवहार करते। किन्तु लोग बचपन समझकर टाल जाते। धीरे-धीरे वे तीनों बड़े हो गये उन्होंने दसवीं पास कर ली। और गर्मी की छुट्टी में बाहर घूमने जाने का विचार किया। माँ बाप से पैसे लेकर वे दूर-दूर तक तीर्थ स्थान देखने निकल पड़े। एक दिन घूमते-घूमते उन्हें अंधेरा हो गया। पानी बरसने लगा। और ओले पड़ने लगे। वे भागते-भागते एक झोपड़ी में घुस गए वहाँ एक सुशील, बुद्धिमान स्त्री अपनी बेटी के साथ रहती थी। रामू ने उससे कहा ऐ माता मैं राह भटक गया हूँ और बाहर अंधेरा है। बड़े-बड़े ओले पड़ रहे हैं। ऐसे में कहीं सुरक्षित जगह जाना कठिन है, क्या आप रात्रि भर के लिये थोड़ी जगह दे सकती हैं ? स्त्री ने उत्तर दिया वह सामने एक मकान है जिसमें नीचे पशु बांधती हूँ ऊपर ठहरने को एक कमरा है तुम आराम से रात्रिभर ठहर सकते हो। हाँ और खाने को ये चार रोटी साग तथा एक लोटे में पानी भर लेते जाओ। रामू वहाँ जाकर आराम करने लगा भोजन उसने साथियों के साथ खाने के लिये रख दिया।

Answered by srab12345
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किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।

किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है, व्यक्तित्व विकास के लिए भाषा का महत्त्व तो है ही, परन्तु इसके साथ-साथ वाणी की मधुरता भी उतनी ही आवश्यक है। यह वाणी ही हैं जिससे किसी भी मनुष्य के स्वाभाव का अंदाज़ा होता है। चेहरे से अक्सर जो लोग सौम्य अथवा आक्रामक दिखाई देते हैं, असल ज़िन्दगी में उनका स्वभाव कुछ और ही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बातचीत के लहज़े से ही व्यक्तित्व का सही अंदाजा लगाया जा सकता है।

ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है और यही हर धर्म का सन्देश हैं। प्रेम की तो अजीब ही लीला है, प्रभु के अनुसार तो स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है और इससे स्वयं प्रभु खुश होते हैं। कुरआन के अनुसार जब प्रभु किसी से खुश होते हैं तो अपने फरिश्तों से कहते हैं कि मैं उक्त मनुष्य से प्रेम करता हूँ, तुम भी उससे प्रेम करों और पुरे ब्रह्माण्ड में हर जीव तक यह खबर फैला दो। जिस तक भी यह खबर पहुंचे वह सब भी उक्त मनुष्य से प्रेम करे और इस तरह यह सिलसिला बढ़ता चला जाता है।

किन्तु कुछ लोग अपने अहंकार की तुष्टि के लिए अपनी वाणी का दुरूपयोग करते हैं, जिससे झगड़ो की शुरूआत हो जाती है। अगर आप आए दिन होने वाले झगड़ो का विश्लेषण करें तो पाता लगेगा कि छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े झगडे हो जाते हैं और उनकी असल जड़ कटु वाणी ही होती है।

इसलिए अगर आपको अपना सन्देश दूसरों तक पहुँचाना हैं तो कटु वाणी का त्याग करके मधुर वाणी को उपयोग करना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मधुरता से सुवचन बोले जाएं तो बात के महत्त्व का पता चलता है, वर्ना अर्थ का अनर्थ ही होता है।

परन्तु मधुर वाणी बोलने से तात्पर्य यह नही है कि मन में द्वेष रखते हुए मीठी वाणी का प्रयोग किया जाए। जीवन का लक्ष्य तो मन की कटुता / वैमनस्य को दूर करके अपनी इन्द्रियों पर काबू पाना होना चाहिए।

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