vagya ke bharose na rehkar manushya ko karm pradhan banna chahiye .iss vakya ko vishleshan kijiye.
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रविवारको महर्षि दयानंद योग चिकित्सा आश्रम अर्बन एस्टेट जींद मे मासिक वेदिक सत्संग का आयोजन स्वामी रामवेश की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। देवराज शास्त्री सुनील शास्त्री ने भी अपने विचार रखे। स्वामी रामवेश ने कहा कि मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान होना चाहिए। इस जन्म में हम जैसे कर्म करते हैं अगले जन्म में जन्म, आयु और भोग उसी प्रकार से मिलता है। कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका चालू जन्म में तुरंत फल मिल जात हैं। कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनके आधार पर अगला जन्म, आयु और भोग मिलता है।
मनुष्य के कर्मों की तस्वीर उसके चेहरे से देख सकते हैं। क्रूर और जल्लाद का चेहरा अलग से ही दिखाई पड़ेगा। ईश्वर भगत और परोपकारी व्यक्ति का चेहरा प्रसन्न और स्वस्थ दिखाई देगा। स्वामी रामवेश ने कहा कि यदि हम सुख चाहते हैं तो अच्छे कर्म करते रहें। हमारे जीवन में पाप कर्म और पुण्य कर्मों का अलग-अलग परिणाम होता है। वेद ने भी मनुष्य को उपदेश दिया है कि है मनुष्य तू कर्म करते हुए सौ साल तक जीने की इच्छा कर। कर्म बंधन से छूटने का केवल मात्र यही रास्ता है। इस अवसर पर मास्टर जगदीश चंद्र आर्य, रघुवीर सिंह मलिक, कैप्टन रामदत आर्य, जगफुल ढिल्लो, मा. मोहन लाल आर्य उपस्थित रहे।
संसार में दो तरह के लोग होते हैं । एक कर्म करने वाले लोग और दूसरे भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोग । बड़े - बड़े महापुरुष , वैज्ञानिक , उद्योगपति , शिक्षाविद , देश के कर्णधार तथा बड़े - बड़े अधिकारी अपने कार्यों के बल पर ही महान कहलाए । कर्म करने वाले व्यक्ति ही अपने परिश्रम के फल की उम्मीद कर सकते हैं । हाथ पर हाथ रखकर भगवान के भरोसे बैठे रहने वालों का कोई काम पूरा नहीं होता । निष्क्रिय बैठे रहने वाले लोग भूल जाते हैं कि भाग्य भी संचित कर्मों का फल ही होता है । किसान को अपने खेत में काम करने के बाद ही अन्न की प्राप्ति होती है । व्यापारी को बौद्धिक श्रम करने के बाद ही व्यवसाय में लाभ होता है । कहा भी गया है कि कर्म प्रधान विश्व करि राखा । जो जस करे सो तस फल चाखा । इस प्रकार कर्म सफलता की ओर ले जाने वाला मार्ग है ।