Vah todti Patthar Mein Kavi kis ka varnan kar raha hai
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हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/वह तोड़ती पत्थर
कवि हैदराबाद के किसी रास्ते पर उस महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखते है। वह एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठी है, जहा छाया नहीं मिल रही आस पास भी कोई छायादार जगह नहीं हैं। इस प्रकार कवि शोषित समाज की विषमता का वर्णन करते है।
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