वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
इसका नित उर्मिल करुणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरी में निर्मम तन बदला?
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सब आँखों के आँसू उजले कविता- महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)
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