CBSE BOARD XII, asked by omprasadsahu51, 1 month ago

वह चुपचाप बैठा पान को मुँह में घुलाता रहा। शब्द भेद बताए।​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

मैंने घंटों बैठ कर उसके काम करने के ढंग को देखा है. एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर बड़े जातां से उसकी कुच्ची बनाता. फिर, कुच्चियों को रंगने से ले कर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त... काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी कि गेंहुअन सांप की तरह फुफकार उठता,‘फिर किसी दूसरे से करवा लीजिए काम. सिरचन मुंहजोर है, कामचोर नहीं.’ बिना मज़दूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर. दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में ज़रा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता.

सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैं... तली-बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध, इन सब का प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ; दुम हिलाता हुआ हाज़िर हो जाएगा. खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई ख़त्म! काम अधूरा रख कर उठ खड़ा होगा,‘आज तो अब अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है. थोड़ा-सा रह गया है, किसी दिन आ कर पूरा कर दूंगा... ‘किसी दिन’ माने कभी नहीं!

मोथी घास और पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बांस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोर के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के बहुत-से काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गांव में और कोई नहीं जानता. यह दूसरी बात है कि अब गांव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग- बेकाम का काम, जिसकी मज़दूरी में अनाज या पैसे देने की कोई ज़रूरत नहीं. पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना-धुराना कपड़ा दे कर विदा करो. वह कुछ भी नहीं बोलेगा...

कुछ भी नहीं बोलेगा, ऐसी बात नहीं. सिरचन को बुलाने वाले जानते हैं, सिरचन बात करने में भी कारीगर है... महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी सिरचन की बात सुन कर तिलमिला उठी थी-‘ठहरो! मैं मां से जा कर कहती हूं. इतनी बड़ी बात!’

‘बड़ी बात ही है बिटिया! बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है. नहीं तो दो-दो पटेर की पटियों का काम सिर्फ़ खेसारी का सत्तू खिला कर कोई करवाए भला? यह तुम्हारी मां ही कर सकती है बबुनी!’ सिरचन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया था.

उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी. पहली बार ससुराल जा रही थी मानू. मानू के दूल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को खत लिख कर चेतावनी दे दी है,‘मानू के साथ मिठाई की पतीली न आए, कोई बात नहीं. तीन जोड़ी फ़ैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो...’ भाभी ने हंस कर कहा,‘बैरंग वापस!’ इसलिए, एक सप्ताह से पहले से ही सिरचन को बुला कर काम पर तैनात करवा दिया था मां ने,‘देख सिरचन! इस बार नई धोती दूंगी, असली मोहर छाप वाली धोती. मन लगा कर ऐसा काम करो कि देखने वाले देख कर देखते ही रह जाएं.’

पान-जैसी पतली छुरी से बांस की तीलियों और कमानियों को चिकनाता हुआ सिरचन अपने काम में लग गया. रंगीन सुतलियों से झब्बे डाल कर वह चिक बुनने बैठा. डेढ़ हाथ की बिनाई देख कर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फ़ैशन की चीज़ बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी.

मंझली भाभी से नहीं रहा गया, परदे के आड़ से बोली,‘पहले ऐसा जानती कि मोहर छाप वाली धोती देने से ही अच्छी चीज़ बनती है तो भैया को ख़बर भेज देती.’

काम में व्यस्त सिरचन के कानों में बात पड़ गई. बोला,‘मोहर छापवाली धोती के साथ रेशमी कुरता देने पर भी ऐसी चीज़ नहीं बनती बहुरिया. मानू दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है... मानू दीदी का दूल्हा अफ़सर आदमी है.’

मंझली भाभी का मुंह लटक गया. मेरे चाची ने फुसफुसा कर कहा,‘किससे बात करती है बहू? मोहर छाप वाली धोती नहीं, मूंगिया-लड्डू. बेटी की विदाई के समय रोज मिठाई जो खाने को मिलेगी. देखती है न.’

दूसरे दिन चिक की पहली पांति में सात तारे जगमगा उठे, सात रंग के. सतभैया तारा! सिरचन जब काम में मगन होता है तो उसकी जीभ ज़रा बाहर निकल आती है, होंठ पर. अपने काम में मगन सिरचन को खाने-पीने की सुध नहीं रहती. चिक में सुतली के फंदे डाल कर अपने पास पड़े सूप पर निगाह डाली-चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला. मैंने लक्ष्य किया, सिरचन की नाक के पास दो रेखाएं उभर आईं. मैं दौड़ कर मां के पास गया. ‘मां, आज सिरचन को कलेवा किसने दिया है, सिर्फ़ चिउरा और गुड़?’

मां रसोईघर में अंदर पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी. बोली,‘मैं अकेली कहां-कहां क्या-क्या देखूं!... अरी मंझली, सिरचन को बुंदिया क्यों नहीं देती?’

‘बुंदिया मैं नहीं खाता, काकी!’ सिरचन के मुंह में चिउरा भरा हुआ था. गुड़ का ढेला सूप के किनारे पर पड़ा रहा, अछूता.

मां की बोली सुनते ही मंझली भाभी की भौंहें तन गईं. मुट्ठी भर बुंदिया सूप में फेंक कर चली गई.

सिरचन ने पानी पी कर कहा,‘मंझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोल कर बांटती है क्या?’

बस, मंझली भाभी अपने कमरे में बैठकर रोने लगी. चाची ने मां के पास जा कर लगाया,‘छोटी जाति के आदमी का मुंह भी छोटा होता है. मुंह लगाने से सर पर चढ़ेगा ही... किसी के नैहर-ससुराल की बात क्यों करेगा वह?’

मंझली भाभी मां की दुलारी बहू है. मां तमक कर बाहर आई,‘सिरचन, तुम काम करने आए हो, अपना काम करो. बहुओं से बतकुट्टी करने की क्या ज़रूरत? जिस चीज़ की ज़रूरत हो, मुझसे कहो.’

सिरचन का मुंह लाल हो गया. उसने कोई जवाब नहीं दिया. बांस में टंगे हुए अधूरे चिक में फंदे डालने लगा.

मानू पान सजा कर बाहर बैठकखाने में भेज रही थी. चुपके से पान का एक बीड़ा सिरचन को देती हुई बोली और इधर-उधर देख कर कहा,‘सिरचन दादा, काम-काज का घर! पांच तरह के लोग पांच किस्म की बात करेंगे. तुम किसी की बात पर कान मत दो.’

सिरचन ने मुस्कुरा कर पान का बीड़ा मुंह में ले लिया. चाची अपने कमरे से निकल रही थी. सिरचन को पान खाते देख कर अवाक हो गई. सिरचन ने चाची को अपनी ओर अचरज से घूरते देख कर कहा,‘छोटी चाची, ज़रा अपनी डिबिया का गमकौआ जर्दा तो खिलाना. बहुत दिन हुए....’

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