वह चिड़िया जो कविता केदारनाथ द्वारा रचित अग्रवाल द्वारा रचित है चिड़िया एक सदन बनती है लेकिन इस करो ना काल में आप सभी अपने घर में बंद है अपने आप को एक पक्षी मानते हुए हैं अपने विचार लिखें कि आपको घर में बंद रहना कैसा लग रहा है
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"हमे कभी भी पक्षियों को पिंजरे में कहने करना चाहिए।
अगर हम पक्षी की जगह होते तो हम कहते हैं कि मुझे पिंजरे में कैद मत करो हमारी शक्ल खुले आसमान में हैं।
"अगर मैं चिड़िया होती तो कहती मुझे खुले आसमान में जाना है मैं अपने मित्रों से नहीं मिल सकती हूं मुझे यहां रहकर अच्छा नहीं लग रहा है मुझे आजाद कर दो।"
"पक्षी के पास पिंजरे के अंदर वे सारी सुख सुविधाएँ है जो एक सुखी जीवन जीने के लिए आवश्यक होती हैं, परन्तु हर तरह की सुख-सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद नहीं रहना चाहते क्योंकि उन्हें बंधन नहीं अपितु स्वतंत्रता पसंद है।"
("Hope this Helpful.")
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अग्रवाल द्वारा रचित है चिड़िया एक सदन बनती है लेकिन इस करो ना काल में आप सभी अपने घर में बंद है अपने आप को एक पक्षी मानते हुए हैं अपने विचार लिखें कि आपको घर में बंद रहना कैसा लग रहा है
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