वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे - nibandh likhe lagbhag 250 shabd main
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"मनुष्य वाही है जो मनुष्य के लिए मरे"
अर्थात दूसरों के हित के लिए किया गया कार्य ही परोपकार कहलाता है। मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए काम आए। अंपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन जीवन उसका सफल है जो दूसरों की भलाई करे I संसार में परोपकार ही व गुण है जिससे मनुष्य में अथवा जीवन में सुख की अनुभूति होती है। समाज सेवा की भावना देश प्रेम की भावना देश भक्ति की भावना , दुख में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना यह सब कार्य व्यक्तियों की निशानी है।
परोपकार के लाभ:-> परोपकार का सबसे बड़ा लाभ है आत्म संतुष्टि, आत्मा को शांति मिलना कि मैंने दूसरों के हित के लिए यह काम किया है। परोपकार निस्वार्थ भाव से किया जाता है किंतु इसके बदले में परोपकारी प्राणी को वो संपत्ति प्राप्त हो जाती है जो लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदी जा सकती वह संपत्ति है मन का सुख।
परोपकार एक पवित्र कार्य है लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पात्रों की सहायता करनी चाहिए कुपात्रों की नहीं।
हमारी सभ्यता और संस्कृति पूरे विश्व का मार्गदर्शन करती है और हमारा इतिहास भी परोपकार के कई उदाहरणों से भरा पड़ा है।
हमारे ग्रंथों में भी परोपकार के लिए प्रेरणा दी गई है, कहां गए हैं कि सज्जन व्यक्ति परोपकार के लिए ही धन इकट्ठा करते हैं।
उपसंहार:-> परोपकार की भावना राष्ट्र की हर व्यक्ति में होनी चाहिए लेकिन आज कुछ लोग इसका गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं I वह लोगों से धन का संग्रह तो करते हैं लेकिन परोपकार के कार्य में उसका उपयोग नहीं करते I अत: हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम जो कार्य कर रहे हैं क्या वह सच में दूसरे लोगों के लिए लाभकारी होगा।
अर्थात दूसरों के हित के लिए किया गया कार्य ही परोपकार कहलाता है। मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए काम आए। अंपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन जीवन उसका सफल है जो दूसरों की भलाई करे I संसार में परोपकार ही व गुण है जिससे मनुष्य में अथवा जीवन में सुख की अनुभूति होती है। समाज सेवा की भावना देश प्रेम की भावना देश भक्ति की भावना , दुख में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना यह सब कार्य व्यक्तियों की निशानी है।
परोपकार के लाभ:-> परोपकार का सबसे बड़ा लाभ है आत्म संतुष्टि, आत्मा को शांति मिलना कि मैंने दूसरों के हित के लिए यह काम किया है। परोपकार निस्वार्थ भाव से किया जाता है किंतु इसके बदले में परोपकारी प्राणी को वो संपत्ति प्राप्त हो जाती है जो लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदी जा सकती वह संपत्ति है मन का सुख।
परोपकार एक पवित्र कार्य है लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पात्रों की सहायता करनी चाहिए कुपात्रों की नहीं।
हमारी सभ्यता और संस्कृति पूरे विश्व का मार्गदर्शन करती है और हमारा इतिहास भी परोपकार के कई उदाहरणों से भरा पड़ा है।
हमारे ग्रंथों में भी परोपकार के लिए प्रेरणा दी गई है, कहां गए हैं कि सज्जन व्यक्ति परोपकार के लिए ही धन इकट्ठा करते हैं।
उपसंहार:-> परोपकार की भावना राष्ट्र की हर व्यक्ति में होनी चाहिए लेकिन आज कुछ लोग इसका गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं I वह लोगों से धन का संग्रह तो करते हैं लेकिन परोपकार के कार्य में उसका उपयोग नहीं करते I अत: हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम जो कार्य कर रहे हैं क्या वह सच में दूसरे लोगों के लिए लाभकारी होगा।
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