वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
1. 'बार-बार' प्रहार से कवि का क्या आशय है ?
2. काव्यांश में निहित भाव को अपनें शब्दों में लिखें।
3. छायदार पेड़ की आवश्यकता कवि क्यूं महसूस करता है ?
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1.नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
2.,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुर
3.कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
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नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
2.,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुर
3.कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
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