वह तोड़ती पत्थर,
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के
पथ पर।
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई
म
स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु मालिका
अट्टालिका प्राकार।
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