वह तोड़ती पत्थर,
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के
पथ पर।
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई
स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु मालिका
अट्टालिका
प्राकार।
वह तोड़ती पत्थर में कवि किसका वर्णन कर रहा है
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‘तोड़ती पत्थर’ कविवर निराला रचित एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में कवि ने एक गरीब मजदूरिन की विवशता और कठोर श्रम-साधना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।
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