वह विलायती चूहा है।इसमें सर्वनाम क्या है और उसका वेद बताइए
Answers
Explanation:
चूहा एक आतंकवादी होता है। आतंक फैलाने की ट्रेनिंग उसे अपनी अम्मा के पेट से ही मिल जाती है। चूहे की अम्मा के पेट के दो हिस्से होते हैं। एक में आतंकवादी पैदा किये जाते हैं और दूसरे हिस्से में उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। धरती पर अवतरित होने के एक सप्ताह के भीतर ही चूहा अपना आतंक फैलाना शुरू कर देता है। यदि वो आपके घर में है तो छुपाकर सुरक्षित रखे सभी सामानो के अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। चूहे को किसी बाहरी हथियार का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उसके नुकीले दांत ही हर प्रकार के हथियार का काम करते हैं। ये दांत लकड़ी से लेकर लोहे की तारों तक को काटने की क्षमता रखते हैं। किताबों से चूहे को खास प्यार होता है। पन्नो को कुतरने में उसे असीम आनंद की अनुभूति होती है। ठीक वैसे ही जैसे आसाराम को कन्याओं का संसर्ग पाकर होता था। सबसे कमाल की बात है कि चूहा यदि आपके घर में आपके साथ है तो भी इस बात की अनुभूति आपको तब होती है जब आपका काफी कुछ नुकसान हो चुका होता है।
चूहा सुरंग बनाने में उस्ताद होता है। सुरंग बनाने वाले इंसानी इंजीनियर भी चूहे की कला से बहुत कुछ सीखते हैं। आलू के खेतों के नीचे चूहों का राज होता है। चूहे देश में हर साल करोड़ो रुपये की फसल बरबाद कर देते हैं। चूहों का आतंक अगर खत्म हो जाय तो सरकार को देश में खाद्य सुरक्षा गारंटी योजना चलाने की शायद ज़रूरत ही न पड़े। चूहों के सामने सब विवश हैं। इन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता न ही इन्हें परिवार नियोजन की सलाह दी जा सकती है। दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं जहां चूहो ने आतंक न फैला रखा हो। इनका कोई मजहब नहीं होता। आतंक के मामले में ये सभी को एक निगाह से देखते हैं।
लेकिन चूहे हैं भी बड़े काम की चीज़। मेडिकल साईंस इन पर रिसर्च करता है। चूहों को लेकर दुनिया की ज़्यादातर भाषाओं में मुहावरे और प्रचलित लोकोक्तियां हैं। चूहे को संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। अधिकतर शादी-शुदा पुरुष अपनी पत्नियों से डरते हैं, लेकिन ये पत्नियां चूहों से डरती हैं।
लेकिन, शहरों में रहने वाले आजकल के फ्लैटियर बच्चे चूहों को सिर्फ किताबों में ही देखते और आर फॉर रैट पढ़ते हैं या फिर कार्टून और एनिमेशन चैनलों पर ही इन्हें देख पाते हैं। चूहों को प्रत्यक्ष रूप में देखना इनके लिये संभव नहीं हो पाता। लेकिन पिछले कुछ दिनो से एक चूहे ने मेरे घर पर बिन बुलाये मेहमान की तरह आकर हमें काफी आतंकित किया। वो अपनी योजनाएं दिन में बनाता था और उन्हें अंजाम रात में देता था। सुबह उठने पर किचेन का सामान अस्त-व्यस्त, गिरा-पड़ा मिलता। बाथरूम में साबुनदान से साबुन नदारद रहता। टूथपेस्ट का ट्यूब नीचे से कटा रहता। ईशिता (बिटिया) ने कहा कि हो सकता है कि कोई भूत घर में घुस आया हो। खैर, एक दो दिनो में ही फर्श पर पड़ी काली-काली पाचक की गोलियों की तरह की किसी वस्तु ने ये साफ कर दिया कि घर में चूहे का प्रवेश हो चुका है। हमारे लिये परेशानी का वक्त शुरू हो चुका था, लेकिन ईशिता के लिये ये क्षण उत्साह का था। आखिर, अब चूहे को सामने से देख पायेगी। उसे इस बात का उत्साह और भी था कि वो अपनी क्लास के बच्चों को बता पायेगी कि उसने चूहे को सामने से देखा है। मगर चूहा दीख ही नहीं रहा था। आंखों में डर ओढ़े ईशिता सोफे पर दोनो पांव उपर कर घंटो बैठी रहती ताकि मूषक महाराज के दर्शन हों। ये दृश्य उसी तरह था जैसे किसी अभयारण्य में शेर देखने के लिये लोग किसी सुरक्षित जगह पर बैठ टकटकी लगाये रहते हैं। एक-दो बार चूहा उधर से गुज़रा भी, मगर उसकी गति इतनी तेज़ थी कि कुछ पता नहीं चल सका, सिर्फ किसी चीज़ के गुज़रने का अहसास मात्र हुआ। ईशिता निराश हो चली थी कि चूहे का दर्शन क्यों नहीं हो रहा है और हम आतंकित थे कि आज रात में क्या-क्या नुकसान सहना होगा। समस्या ये थी कि चूहे को घर से निकालें कैसे। किसी ने सलाह दी की चूहे मारने की दवा रख दें, काम हो जायेगा। मगर ऐसा करने से दो गैर-फायदे थे- एक तो ये कि ईशिता ज़िंदा चूहे का दर्शन नहीं कर पायेगी और दूसरा ये कि ज़हर वाली दवा खाने के बाद चूहे अक्सर घर के किसी ऐसे छुपे हुए कोने में दम तोड़ते हैं जिसका पता आप को दो-चार दिन बाद उसके निर्जीव शरीर के सड़ांध से ही लग पाता हैं। फिर उसे फेंकना और घर की सफाई करना एक अलग चौथा मोर्चा खोलने से कम नहीं होता।
बहरहाल, मन में ख्याल आया कि क्यों न चूहे फंसाने वाला पिंजरा लाया जाय जिससे सारे काम एक ही झटके में हो जाय। सो बाज़ार से 80 रुपये में ऐसा ही एक पिंजरा ले आया और रात में रोटी फंसा कर रख दी। अगले दिन उठा तो लगा कि चूहा कैद हो गया होगा। लेकिन निराशा हाथ लगी। चूहा, नारायण साईं की तरह अभी भी पिंजरे की गिरफ्त से दूर था। फिर मैंने भी एक चाल चली। दूसरी रात रोटी के साथ चिकेन कबाब का एक टुकड़ा भी रख दिया। अगली, यानि आज की सुबह देखा तो मेरी चाल कामयाब हो गई थी। नारायण...अरे...मेरा मतलब चूहा साईं पिंजरे में कैद हो चुके थे। ईशिता सुबह उठी तो स्कूल जाने के लिये, मगर कैद में आये चूहे को देखने के उत्साह ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया। उसने पिंजरे में कैद चूहे को आगे से, पीछे से , उपर से , नीचे से सब तरह से देखा। एक खास चीज़ उसने नोटिस भी की, कि मूंछे सिर्फ नत्थूलाल की ही नहीं, चूहे की भी होती हैं, वो भी तनी हुईं।
फिर हम दोनो गाड़ी से निकले और दूर कहीं जाकर चूहे को आज़ाद कर दिया ताकि वो ज़िंदा रहे लेकिन दुबारा हमारे घर अतिथि न बने। ईशिता ने उसे गाड़ी से ही बॉय-बॉय बोल दिया।
वैसे कोई भी कोई भी भरा-पूरा घर-परिवार चूहों से खाली नहीं होता। असली चूहे न भी हों तो पापा लोगों की भूमिका चूहों वाली ही होती है। किसी ने सही कहा है- मम्मियां चूहों से डरती है- चूहे बिल्लियों से डरते हैं- बिल्लियां कुत्तों से डरती हैं- कुत्ते पापाओं से डरते हैं- और पापाएं मम्यों से डरते हैं। दुनिया आखिर गोल है भाई।