vaigyanik yug essay in hidi
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वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी| विज्ञान लगातार प्रगति कर रहा है और इसका गंतव्य क्या है; खुद इसे भी नहीं पता अत: सतत प्रगतिशीलता ही विज्ञान की पहचान है| भावी में न जाने और कितने अविष्कार हमें चमत्कृत करेंगे ये सिर्फ कल्पना का विषय है क्यंकि आज से पन्द्रह वर्ष पूर्व हमें आभास भी नहीं था कि मोबाइल और इंटरनेट इस रफ्तार से दूरियां पाट देगा, रोबोट हमारे सब काम सम्पन्न कर देगा| कपड़े व बर्तन धोने की मशीन, वेक्यूम क्लीनर, इन्डकशन, माइक्रोवेव, जूसर-मिक्सर सरीखे अविष्कार हर घर में उपस्थित होकर गृहणियों को चारदीवारी से बाहर आने को प्रेरित कर रहे हैं| नि:संदेह इन उपकरणों ने हमारे अमूल्य समय व शक्ति की बचत की हैं| हम उस उर्जा को रचनात्मक कार्यो में प्रयुक्त कर रहे हैं| पर ये प्रश्न अप्रासंगिक नहीं होगा कि वैज्ञानिक अविष्कार सिर्फ वरदान ही नहीं वरन अभिशाप भी है| अनुपयुक्त व अंधाधुंध इस्तेमाल प्रकृति व मानव दोनों के लिए घातक है| दिनों-दिन मनुष्य इन आविष्कारों के अधीन होकर अपनी स्वतंत्रता और भावनात्मक संतुलन खोता जा रहा है| अत: सारत: यह कहना उचित होगा कि विज्ञान हमारी सहायता के लिए है, जीवन को सुसंस्कृत बनाने के लिए है न कि हमें उसका गुलाम और मशीन बनाने के लिए| इसलिए हम सबको इस वैज्ञानिक युग का भरपूर सदुपयोग करते हुए जीवन को संतुलित रखना होगा|
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