वमत्रता एक अनमोि संबध है । िो िून का ररश्ता नहीं होता िेककन उससे बढ़कर होता है । वमत्रता
करने में कुछ चीिों का ध्यान रिना चावहए । सभी को वमत्र नहीं बनाना चावहए । सच्चे वमत्र की परि
करना बहुत ही िरुरी होता है । बहुत से िोगों से वमत्रता करना भी ठीक नहीं है । क्योंकक सच्ची और
आदशि मैत्री एक-दो से ही संभि है । यह भी ध्यान रिना चावहए कक ककसी को भी अपने िेम और
विश्वास में िेने से पहिे िूब िाूँच-परि िेना चावहए । किर धीरे-धीरे वनरंतर अपने िेम को िगाढ़ता
िदान करते रहना चावहए । एक िवसद्द विद्वान ने पक्की वमत्रता का मंत्र बताते हुये कहा है कक मनुष्य
िो स्ियं करे, उसे भूि िाए और उसका वमत्र िो अच्छा कायि करे, उसे सदैि याद रिे । वमत्रता का
यही आधार है । इस तरह से वमत्रता ऐसी भािना है िो एक दूसरे को ताकत िदान कराती है । 28. वमत्रता िगाढ़ कैसे होती है ?
29. वमत्रता का आधार बताइए ।
30. उपयुिक्त पररच्छेद का उवचत शीषिक दीविये ।
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