Social Sciences, asked by ramesh0214559, 4 months ago


वन अधिनियमों का चरवाहों की जिंदगी पर कौन सा प्रभाव नहीं पड़ा?
a) उन्हें जंगलों में जाने से रोक दिया गया।
b) जंगलों में प्रवेश के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था
c) परमिट पर जंगल में रहने की समय-सीमा लिखी होती थी।
d) चरवाहे, जंगलों में सिर्फ अपने मवेशियों को ले जा सकते थे।​

Answers

Answered by sanjana08011983
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Answer:

अधिनियम, 13 अध्यायों के विषयों से संबंधित है। अध्यानय 1 संक्षिप्त नाम और विस्तार-क्षेत्र से संबंधित है। अधिनियम का द्वितीय अध्याय आरक्षित वनों के विषय से संबंधित है। अध्याय तीन गांव के जंगलों से संबंधित है। चतुर्थ अध्याय संरक्षित वनों से संबंधित है। अध्याय पांच उन वनों और भूमि से संबंधित है जो सरकार की संपत्ति नहीं है। अध्याय छ: केन्द्र सरकार द्वारा इमारती लकड़ी तथा अन्यो वन उत्पादन पर शुल्क लगाने से संबंधित है। अध्याय सात इमारती लकड़ी और अन्य् वन उत्पातदन के पारगमन पर नियंत्रण से संबंधित है। धारा 41 राज्य सरकार को वनोपज के पारगमन को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

अधिनियम के अध्याय आठ का प्रयोजन बह कर आए और फँसे हुए इमारती लकड़ी में स्वामी के अधिकार को विनियमित करना है। अध्याय नौ, दंड और प्रक्रिया तथा कुछ वनोपज जो पहली दृष्टि में सरकार की संपत्ति नहीं हो सकती हैं, से संबंधित है। अधिनियम का अध्या य दस एक आरक्षित वन में, या संरक्षित जंगल के किसी भी हिस्से में जो चराई के लिए विधिवत बंद कर दिया गया है, में पशु अतिचार अधिनियम, 1871 के लागू होने से संबंधित है। अध्याय दस, लाइनों के संबंध में अधिसूचना जारी करने की राज्य सरकार की शक्ति से भी संबंधित है। अध्याय ग्यारह वन अधिकारी की शक्तियों और कर्तव्यों से संबंधित है। अध्याय बारह राज्य सरकार को सहायक नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है। अध्याय तेरह, अधिनियम के दायरे में वन अधिकारी और पुलिस अधिकारियों की, उनके कर्तव्यों को पूरा करने में, मदद करने के लिए नागरिक के नैतिक कर्तव्यों से संबंधित है। यह अध्याय अन्य विविध मामलों से भी संबंधित है।

इस तरीके से अधिनियम कुछ शर्तों के तहत वन भूमि के संरक्षण पर चिंतन करता है, चाहे वे आरक्षित वन, ग्रामीण वन, संरक्षित वन हों या निजी मालिकों का जंगल हो।

यद्यपि भारतीय वन अधिनियम (i) आरक्षित वन (ii) ग्रामीण वन अर्थात जो किसी ग्रामीण समुदाय के लिए आवंटित तथा आरक्षित किया गया हो, और (iii) वनों की रक्षा, से विशेष रूप से संबंधित है। वन अधिनियम की प्रस्तावना और अन्य प्रावधान जंगलों की सभी श्रेणियों को कवर करने के लिए पर्याप्त विस्तृत हैं। यह अधिनियम व्यक्तियों के मालिकाना अधिकार में एक कटौती है और इसलिए इस अधिनियम और इसके तहत जारी अधिसूचना पर सख्ती से ध्यान देना चाहिए जहां व्यक्तियों के अधिकारों पर खतरा है।

आपराधिक प्रावधान

कोई भी व्यक्ति, निम्नलिखित अपराधों में से किसी को भी करता है, अर्थात:

1)धारा 30 के तहत सुरक्षित वृक्ष को काटना, वृक्ष के चारों ओर खाई बनाना, वृक्ष की शाखा को काटना, शराब डालना, जलाना या वृक्ष की छाल या पत्तियों को उतारना, या अन्य किसी प्रकार की क्षति।

2)धारा 30 के तहत किसी भी निषेध के विपरीत, कोई भी पत्थर खदान, किसी भी चूने या लकड़ी का कोयला जलाना या जमा करना, कोई भी निर्माण प्रक्रिया संबंधी विषय, या किसी भी वन उपज को नुकसान पहुँचाना।

3)धारा 30 के तहत किसी भी निषेध के विपरीत, किसी भी संरक्षित वन में कहीं भी किसी भी जगह को खेती या किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए साफ करता है।

4)धारा 30 के तहत आरक्षित वन में, जहां पेड़ खड़े हों, गिरे हों, या इस तरह से किसी पेड़ों या वनों के नजदीक, जंगल में आग लगाना, या आग को किसी पेड़ तक फैलने से रोकने के लिए आवश्यहक एहतियात के बिना उत्तेमजित करना।

5)किसी पेड़ या उसके आसपास के क्षेत्र में उसके द्वारा आग जलती हुई छोड़ देता है।

6)उपरोक्तानुसार आरक्षित किसी भी पेड़ को नुकसान पहुँचाना या किसी भी इमारती लकड़ी को खींचकर कोई पेड़ गिराना या क्षतिग्रस्त करना।

7)किसी भी तरह के पेड़ को नुकसान करने के लिए पशुओं को खुला छोड़ना।

8)धारा 32 के अधीन किसी भी नियम का उल्लंघन करता है।

तो एक अवधि के लिए कारावास जो एक वर्ष तक का हो सकता है, या एक हजार रूपए तक जुर्माना या दोनों, दंडनीय होगा।

Answered by rjha47226
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Answer:

unhe janglo me Jane se rok diya gya

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