वनो को बचाने के ऊपाय
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हमारे चारों ओर की प्रकृति ही हमारा पर्यावरण है।यानि वह सब कुछ जो हम अपने चारो ओर देखते है। आदिकाल से ही मानव और पर्यावरण का गहरा रिश्ता रहा है।जन्म से लेकर मृत्यु तक की प्रक्रिया प्रकृति से जुडी है। भारत में अनादिकाल से प्रकृति की पूजा करते आए है। जिस कारण पर्यावरण के प्रति जागरुक प्राचीन मानव समाज तो शुरु से रहा है। हमारा पर्यावरण हजारो वर्षो से हमें और अन्य प्रकार के जीवो को धरती पर बढने, विकसीत होने और पनपने में मदद कर रहा है। जोहमारे लिए स्वस्थ और खुशहाल जीवन का आधार है।लेकिन आज दिन प्रतिदिन पर्यावरण पर संकट गहराता जा रहा है। भारतएकऐसाविकासशीलदेशहै।जिसमेंविकास के लिए प्राकृतिक संसाधनो के दोहन का जो सिलसिला शुरु हुआ वह आज तक जारी है।पिछले कुछ दशको से इसमेंज्यादा बदलाव आया है। जब विज्ञान के उपयोग से नए आविष्कार होने लगे और फिर औद्योगिक क्रांति ने तो मानव जीवन की दिशा ही बदल डाली। लेकिन इऩ्ही उपलब्धियो के बीच सबसे घातक काम था- प्रकृति के साथ खिलवाड।
पर्यावरण प्रत्यक्षीकरण का प्रतीक चिपको आंदोलन
आज चारो ओर कटते हुए पेडो और उजडते वनो को देख कर भला कोई इस बात पर विश्वास कर सकेगा कि कभी लोगो ने इन पेडो के लिएबंदूक और कुल्हाडियो का सामना किया था। उत्तराखण्ड़ गढ़वाल क्षेत्र में जन्मा चिपको आंदोलन वृक्षो के प्रति बढ़ती नई चेतना और पर्यावरण प्रत्यक्षीकरण का एक प्रतीक है। 1974 में रैणी गांव की साहसी मां बहिनो ने हजारो पेडो को कटने से बचाया था। आजगौरा देवी और अन्य मां बहिने वृक्षो को बचाने के कारण किवदंती बन गई है।दुनिया भर में उन का यह साहस जंगल, धरती, वर्षा, पानी और बयार के अट्टू रिश्ते के बारे में लोगो को सोचने के लिए मजबूर कर गया। भारतीय संविधान के मूल अधिकारो में भी पर्यावरण को अप्रत्यक्ष रुप से समाहित किया गया है जो स्पष्ट रूप से पर्यावरण संरक्षण का उपबंध करता है- “ भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।“ लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या आज हम सच में अपने इस कर्तव्य को निभा रहे है? सचमुच कितनी विडंबना है। विशाल सौरमडंल के केवल हमारे इस छोटे से ग्रह में जीवन का स्पंदन हो रहा है और हम उस जीवन के विनाश का सामान जुटा रहे है।
पर्यावरण का संरक्षण जरुरी
पिछले कुछ दशको को हमने अपनी सुख सुविधाओ के लिए बहुत सारी चीजो का विकास किया है, लेकिन कई अहम पहलुओ को नजर अंदाज भी कर दिया। जिसका समाधान आवश्यक है।किन्तुइससमस्याकासमाधानराजनीतिज्ञो, नीति- नियामको, अधिनियमोमेंनिहितनहीहै।इसकेलिय़ेआवश्यकताहैजनजागरुकताकी।आवश्यकहैकिप्रत्येकदेशवासीहरे- भरेभारतकासपनादेखतेहुएअपनेनिकटतमवातावरणकीस्वच्छताकाबोझउठानेकोतैयाररहे। सभी प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए जरुरत सभी कदम उठाने होगे। हमे जल सरंक्षण पर भी ध्यान देना होगा। जिससे आने वाले समय में पानी की कमी न हो। मानव- विकास प्रक्रिया में स्वच्छ वातावरण की एक गंभीर और अनिवार्य भूमिका है। हमे अपनी भावी पीढी के लिए पेड लगाने और बचाने होगे। यदिपर्यावरणप्रदूषणकीसमस्याकोहमनेउत्पन्नकियाहैतोपर्यावरणकीसुरक्षाकाउत्तरदायित्वभीहमसबकोअपनेकंधोपरलेनाहोगा।इससबकेलिएआत्मचेतनावजगचेतनाजगानेकीआवश्यकताहै। प्रत्येकव्यक्तिकोवृक्षोकेप्रहरीकेरुपमेंकार्यकरनाहोगा। प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग संयुक्त वातावरण में सकारात्मक बदलावो को लाने के लिए प्रयास करना होगा। साथ ही पर्यावरण का संरक्षण करना होगा ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियो को विरासत एक रहने और जीने लायक दुनिया दे सकें।