वनों की कटाई पर संकेत बिंदुओं के साथ अनुच्छेद लिखें
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वनोन्मूलन मानव की विकास यात्रा का परिणाम है, यद्यपि यदा-कदा प्राकृतिक कारण या वनाग्नि भी इन्हें नष्ट करती है किंतु यह उतनी हानिकारक नहीं जितना कि मानव द्वारा विनाश ।
वनों की कटाई के प्रमुख कारण निम्नांकित हैं:-
(i) . कृषि क्षेत्र:-
निःसंदेह विश्व में आज हमें जो कृषि क्षेत्र दृष्टिगत होता है उसमें से अधिकांश वनों को साफ कर प्राप्त किया गया है । यह आवश्यक भी था क्योंकि भोजन मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है । किंतु जब जनसंख्या में वृद्धि हुई और वर्तमान में यह वृद्धि तीव्रतम होती जा रही है तो वनोन्मूलन का प्रारंभ हुआ जो आज तक समस्या बन गया है । कृषि अवश्य होनी चाहिये किंतु यदि इसके लिये वनों को समाप्त किया जायेगा तो कृषि पर भी विपरीत प्रभाव होगा ।
यही नहीं, अपितु अफ्रीका, एशिया एवं दक्षिणी अमेरिका में आज भी स्थानांतरित कृषि की जाती है । इस कृषि में एक क्षेत्र के वनों को जलाया जाता है, तत्पश्चात् कृषि भूमि प्राप्त की जाती है तथा कुछ वर्षों तक वहाँ कृषि कर अन्य स्थानों पर पुन: यही क्रिया दोहरायी जाती है ।
एक अनुमान के अनुसार विश्व में लगभग चार करोड़ वर्ग कि.मी. क्षेत्र में बसने वाले 20 करोड़ आदिवासी इसी पद्धति से कृषि करते हैं । इस प्रकार होने वाली हानि का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अकेले आइवरी कोस्ट में 1956 से 1966 के दस वर्षों में 40 प्रतिशत वन स्थाई रूप से नष्ट हो गये ।
भारत में इसी प्रकार की खेती नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम में की जा रही है । एक अनुमान के अनुसार भारत में कृषि कार्य हेतु 1951-52 एवं 1987-88 के मध्य 29.7 लाख हेक्टेयर भूमि से वनोन्मूलन किया गया ।
(ii). निर्माण कार्यों हेतु वनोन्मूलन:-
जनसंख्या वृद्धि, नगरों का फैलाव, आवासीय भूमि की आवश्यकता में वृद्धि, उद्योगों, रेल-लाइनों, सड़कों का विस्तार तथा नदियों पर बड़े बांधों का निर्माण भी वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है, क्योंकि अधिक क्षेत्र की आवश्यकता वनों को साफ करके ही पूरी की जा सकती है ।
अकेले भारत में 1951-52 से 1985-86 के मध्य नदी घाटी योजनाओं के अंतर्गत 5.84 लाख हेक्टेयर, सड़क निर्माण में 73,000 हेक्टेयर, उद्योगों में 14.6 लाख हेक्टेयर और अन्य विविध कार्यों के लिये 98.3 लाख हेक्टेयर भूमि से वनों को काटा गया ।
बाद के वर्षों में इससे भी अधिक वनों का विनाश हुआ है । जितने भी बड़े बाँध बनाये जाते हैं उनमें हजारों वर्ग कि.मी. का क्षेत्र जलमग्न हो जाता है और उसी के साथ वन भी समास हो जाते हैं । ये बांध लाभदायक होते हुए भी पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।
(iii). काष्ठ, ईंधन एवं अन्य उपयोग हेतु वनोन्मूलन:
वनों से प्राप्त लकड़ी के विभिन्न उपयोग करना मानवीय प्रवृत्ति रही है और सभ्यता के विकास के साथ-साथ यह प्रवृत्ति कम होने के स्थान पर अधिक से अधिकतम होती जा रही है । ईंधन के लिये लकड़ी का प्रयोग मानव प्रारंभ से करता आ रहा है ।
विकसित देशों में अन्य ऊर्जा के स्रोतों का विकास हो जाने के कारण इनका प्रयोग समाप्त हो गया है, किंतु विकासशील देशों में ईंधन के रूप में लकड़ी का प्रयोग आज भी होता है और यह वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है ।
इसी प्रकार लकड़ी का उपयोग भवन निर्माण, फर्नीचर, जहाज, रेल के डिब्बे, रेल लाइनों के स्लीपर, कागज, सेल्योलाज आदि के निर्माण के लिये किया जाता है । इनके लिये विशाल मात्रा में व्यापारिक वन कटाई होती है । कनाडा, स्केन्डिनेविया, रूस में तथा उष्ण कटिबंधीय वनों का व्यापारिक स्तर पर शोषण आज पर्यावरण संकट का कारण बन गया है ।
अनेक उद्योगों जैसे- कागज, दियासलाई, धागे, रबड़, पेंट, वार्निश, रेजिन, कत्था, प्लाईवुड, लाख आदि के लिये भी वनों को काटा जाता है । अनुमान है कि विश्व में लकड़ी उत्पादों से प्रति वर्ष 216 अरब रुपयों की आय होती है । निश्चित है कि यह वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है ।
(iv). खनिज खनन हेतु वनोन्मूलन:-
खनिजों के लिये विस्तृत भूमि की खुदाई की जाती है, फलस्वरूप उन क्षेत्रों में वनों का समाप्त होना निश्चित है । विश्व के अधिकांश देशों में जहाँ व्यापारिक खनन होता है वनों के क्षेत्र में कमी आ जाती है । भारत में उड़ीसा, पं. बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश के खनिज प्रदेश इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । स्थानीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव वन विनाश के रूप में पड़ता है किंतु खनिजों से होने वाले लाभ अधिक होने से यह विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है ।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त पशु चारण द्वारा एवं औद्योगिक कच्चे माल हेतु भी वन विनाश होता है । भू-स्खलन, हिम-स्खलन, वनों में लगने वाली आग भी इनके विनाश का कारण होती है । संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि वनोन्मूलन के लिये मानव की लकड़ी उत्पादों की आवश्यकता में निरंतर वृद्धि मूल कारण है ।
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