वन के पर्यावरणीय महत्व का वर्णन कीजिए
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वन के पर्यावरणीय महत्व
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वन धरती पर सदियों से हैं, तथा ये वन ही हैं जिनके कारण विश्व की जैव विविधता में निरंतरता बनी रहती है। किसी राष्ट्र में विद्यमान वन अथवा जंगल, उस राष्ट्र की न केवल आर्थिक, वरन सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में भी भागीदारी करते हैं। वन तथा जंगल आर्थिक विकास, जैव विविधता, मनुष्य की आजीविका, तथा पर्यावरणीय अनुकूलन प्रतिक्रियाओं के लिए उपयोगी तथा आवश्यक होते हैं।
परंतु वनों के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में जलवायु की स्थिरता, जल-चक्र का विनियमन, तथा सैकड़ों-हज़ारों जीवों को निवास-स्थल प्रदान करना है। जनसँख्या-वृद्धि, निर्धनता एवं निम्न-विकास भारत में पर्यावरण से होने वाली समस्याओं के लिए कुछ हद तक उत्तरदायी हैं।
वृक्ष वातावरण की वायु को शुद्ध करके हानिकारक तत्वों को मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने से रोकते हैं । दिन के समय यह स्वयं कार्बन डाई ऑक्साइड को ग्रहण करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं, तथा ऑक्सीजन को वातावरण में छोड़ते हैं।
इसी ऑक्सीजन को मनुष्य अपने शरीर में सांस के ज़रिये ग्रहण करता है। इस प्रकार वृक्ष वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करके ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं, एवं ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को कम करते हैं।
वृक्ष वाष्पन-उत्सर्जन प्रक्रिया के द्वारा वातावरण के तापमान को नियंत्रित करते हैं एवं धरती की जलवायु को स्थिर बनाये रखते हैं। शहरी क्षेत्रों में, वृक्षों की अधिकता एक तरह से एयर कंडीशनर्स के उपयोग में कमी ला सकती है एवं वातावरण से हानिकारक क्लोरो फ्लूरो कार्बन में कटौती कर सकती है। अधिक वन वाले क्षेत्र सूर्य से उत्पन्न अत्यधिक उष्म विकिरण को रोककर वर्षा के ज़रिये तापमान को स्थिर रखने में उपयोगी सिद्ध होते हैं।
वृक्ष एवं पौधे अपने पत्ते एवं शाखाएं गिराकर, मिट्टी में पोषण को वापस लाने का कार्य करते हैं, जिससे मिटटी की उपजता बनी रहती है । ये मिट्टी को महीन कणों में तोड़ते हैं जिससे की मिट्टी में जल आसानी से प्रवेश कर सके। वृक्ष की जड़ें अत्यधिक जल को सोख कर जल के बहाव को कम करती है , जिससे मिट्टी का कटान अथवा मृदा अपरदन में कमी आती है तथा मृदा की उपजाऊ शक्ति बरकरार रहती है।
वृक्ष नदी-तालाबों से जल-वाष्पन के ज़रिये संघनन की प्रक्रिया के पश्चात् वर्षा करवाने के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। वृक्षों का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में औषधि के लिए शोध एवं फार्मास्यूटिकल कार्यों के लिए किया जाता है।
विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए वृक्षों से उपयोगी पदार्थ को निकाला जाता है। इसके अलावा वृक्ष तथा वन हमेशा से एक आकर्षण का केंद्र बने रहे हैं। ये देश विदेश से अनेक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
जिससे देश के आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है एवं अन्य देशों में भारत की साख भी मजबूत होती हैं। परंतु, जिस गति से वृक्षों का कटान निरंतर चल रहा है, इससे शीघ्र ही सभी वृक्ष एवं वन समाप्ति की कगार पर आ पहुचेंगे।
मनुष्य की वनोन्मूलन की प्रवृत्ति के कारण भारत एवं समस्त विश्व के सामने परिस्थिक्तिकीय असंतुलन एवं जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। भारत की जलवायु, मौसम, वर्षा की मात्रा एवं मृदा की गुणवत्ता पर इसका बुरा असर साफ़ देखा जा सकता है।
मनुष्यों को वृक्षों की महत्ता समझने की अत्यंत आवश्यकता है। उन्हें ये समझना होगा कि वृक्ष हैं तो जीवन है, वृक्ष नही तो कुछ भी नही। वृक्षो की उपयोगिता न सिर्फ दैनिक जीवन, बल्कि प्रति पल, न सिर्फ निचले स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर है।
धरती की 90% जैव विविधता चाहे वह वृक्ष हो या जीव, वनों में ही निवासित है। प्रत्येक वन अपने पशुओं एवं वृक्षों की सहूलियत के अनुसार स्वयं के वातावरण को परिवर्तित करने में सक्षम है। यही कारण है कि धरती से वनों की समाप्ति के साथ ही सभी जीव एवं वृक्ष भी विलुप्त हो जाएंगे, एवं वनों के अभाव में किसी भी प्रकार का जीवन असंभव होगा|