वन महोत्सव पर निबध
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पर्यावरण के प्रति पुरातन काल में भी लोग बहुत सचेत थे जैसे कि गुप्तवंश, मौर्यवंश, मुगलवंश वनों को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही सराहनीय प्रयास किए गए थे. लेकिन जैसे-जैसे हमारा देश तरक्की करता जा रहा है अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह निरंतर वनों की कटाई करता जा रहा है. इस बात को सन 1947 में ही भाप लिया गया था कि अगर वनों को नहीं बचाया गया तो मानव सभ्यता का जीवन संकट में पड़ सकता है.सन् 1947 में स्व. जवाहरलाल नेहरू, स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के के संयुक्त प्रयास से जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव मनाया जाता है. यह वन महोत्सव इसलिए मनाया जाता है जिससे लोगों में पेड़ लगाने के प्रति चेतना उत्पन्न हो और अधिक से अधिक वे पेड़ लगाएं.वन महोत्सव का मुख्य उद्देश्य ही यह है कि सभी जगह पेड़ पौधे लगाए जाएं और वनों के सिकुड़ते क्षेत्र को बचाया जाए. वन महोत्सव सप्ताह में हमारे पूरे देश में लाखों पेड़ लगाए जाते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश इनमें से कुछ प्रतिशत ही पेड़ बच पाते हैं क्योंकि इनकी देखभाल नहीं की जाती है जिसके कारण यह या तो जीव जंतुओं द्वारा खाली जाते हैं या फिर जल नहीं मिलने के कारण नष्ट हो जाते हैं.
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हम लोग अपने जीवन में कई प्रकार से उत्सव मनाते हैं । पारिवारिक सामाजिक धार्मिक एवं राष्ट्रीय उत्सवों में लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं । परंतु वन महोत्सव इस सबसे बढ़कर ऐसा उत्सव है जो हमारे जीवन को सच्चा सुख प्रदान करता है ।यह महोत्सव हमें प्रकृति से जोड़ता है । यह हमें याद दिलाता है कि हे मानव, वनों के बिना तेरा कल्याण नहीं है । वन समस्त प्राणी जगत् के उत्तम साथी हैं । वृक्षों का समूह जो कि वन कहलाता है हमारे जीवन के आधार हैं । वृक्षों के बदौलत ही हमारी धरती हरी-भरी है । वन, उपवन, बाग-बगीचे पृथ्वी पर जीवन और सौंदर्य के साकार रूप हैं ।इनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है । नए-नए वृक्षों को लगाकर वनों को घना करना वन क्षेत्र बढ़ाना वन महोत्सव का एक अंग है । जब हम वनस्पतियों के अस्तित्व के बारे में सोचते हैं तो असल में हम अपने अस्तित्व के लिए ही सोचते हैं ।वृक्ष हमें फल-फूल छाया लकड़ी आदि देते हैं । ये हमें प्राणवायु और जीवनदायी शक्ति देकर हमें उपकृत करते हैं । हमारे देश में वनों के पेड़ों की बेहिसाब कटाई हुई है । वन अपनी प्राकृतिक शोभा खोते जा रहे हैं । यहाँ के कटे पेड़ चीख-चीखकर अपनी दर्दभरी दास्तान बता रहे हैं ।वन्य पशु-पक्षी भी आहत हैं क्योंकि उनका प्राकृतिक आवास विकास की भेंट चढ़ चुका है । वनों को काटकर कृषि भूमि की तलाश की जाती है । झूम खेती इसी का एक वीभत्स रूप है । इतना ही नहीं जहाँ कभी घने वन थे वहाँ आज अट्टालिकाएँ हैं, कल-कारखाने हैं ।यदि ऐसा ही होता रहा तो एक दिन स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी । धरती पर गरमी बढ़ेगी ऊँचे पहाड़ों के बरफ पिघलेंगे बाढ़ और सूखे की जटिल स्थितियों से हमें निरंतर जूझना पड़ेगा । वनों के अभाव में हमें अधिक प्रदूषित वायु में साँस लेना पड़ेगा ।वर्षा का कारण भी ये वन-वृक्ष ही हैं । ये रेगिस्तानों का विस्तार रोकते हैं । वन महोत्सव एक युक्ति है प्राकृतिक सतुलन को बनाए रखने की । इसीलिए पर्यावरण प्रेमियों ने वृक्षारोपण को एक उत्सव का एक महोत्सव का नाम दिया ।सामूहिक रूप से पेड़-पौधे लगाना वन महोत्सव का हिस्सा है । इस महोत्सव में आम लोगों की भागीदारी आवश्यक है । इस कार्य में उन लोगों का सहयोग भी अपेक्षित है जो वन क्षेत्र के आस-पास रहते हैं । ये लोग ही वनों की रक्षा मे सबसे अधिक सहयोग दे सकते हैं ।हमारे देश में वन महोत्सव मनाया जाने लगा क्योंकि हमें पेड़-पौधों के महत्त्व का पता चल गया वन महोत्सव के माध्यम से वृक्षारोपण का नेक संदेश आम नागरिकों नक आसानी से पहुँचाया जा सकता है । वृक्ष लगाने की प्रक्रिया वन महान्मत्र क रूप में आरंभ की जा सकती है ।हमारी आज की आवश्यकताएँ ही कुछ ऐसी है कि वन-वृक्षों की कटाई के बिना काम नहीं चल सकता । साथ-साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि एक कटे पेड़ के स्थान पर दो पेड़ लगाए जाएँ, उनकी उचित देखभाल भी की जाए । अधिकांश रोपित पौधे जल के अभाव में सूख जाते हैं अथवा उन्हें पशु चर जाते हैं ।ऐसे में पेड़ लगाने का लाभ भी समाप्त हो जाता है । इस पूरे घटनाक्रम को समझते हुए हमें वृक्षों के संरक्षण एव संवर्धन का दायित्व निभाना होगा । यदि हम अपना भविष्य सँवारना चाहते हैं और यदि भविष्य में भी आनंद-उत्सव मनाने की कामना करते हैं तो आज से ही वृक्षारोपण की प्रक्रिया आरंभ करनी होगी ।Mark as brainlist