वन महोत्सव पर वृत्तांत लेखन करो
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वन महोत्सव Van Mahotsav – भारत में इसे धरती माता की रक्षा के लिये धर्म युद्ध की तरह शुरु किया गया था. वन महोत्सव का मतलब पेड़ो का उत्सव है. इसकी अनौपचारिक शुरुआत जुलाई 1947 में दिल्ली में सघन वृक्षारोपण हेतु आन्दोलन के रूप में बीड़ा उठाकर की गयी थी, …
भारत में प्रतिवर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वृक्षारोपण के लिये मनाया जाने वाला उत्सव है. यह पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आंदोलन है. इसका सूत्रपात तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (Kulapati Dr. K M Munshi) ने 1950 में किया था.वन महोत्सव को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना व सफलता मिली. वन महोत्सव सप्ताह के दौरान देश भर में लाखों पौधे लगाये जाते हैं. प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वन महोत्सव सप्ताह में एक पौधा जरुर लगावे.
वन महोत्सव लोगों में पेड़ों को काटने से होने वाले नुकसान के प्रति सजगता फैलाने में सहायक है. वन महोत्सव लोगों द्वारा घरों, ऑफिसों, स्कूलों, कॉलेजों आदि में पौधों का पौधारोपण कर मनाया जाता है. इस अवसर पर अलग अलग स्तर पर जागरुकता अभियान चलाये जाते हैं. लोगों को प्रोत्साहित करने लिये विभिन्न संगठनों व वॉलंटियर्स द्वारा निशुल्क पौधों का वितरण भी किया जाता है.
वन महोत्सव पर पौधे लगाकर कई उद्देश्यों को साधा जाता है जैसे वैकल्पिक इंधन व्यवस्था, खाद्यान्न संसाधन बढ़ाना, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये खेतों के चारों ओर शेल्टर बेल्ट बनाना, पशुओं के लिये चारा उत्पादन, छाया व सौंदर्यकरण, भूमि संरक्षण आदि आदि. यह लोगों में पेड़ों के प्रति जागरुकता की शिक्षा का उत्सव है और यह बताता है कि पेड़ लगाना व उनका रखरखाव करना ग्लोबल वार्मिंग व प्रदूषण को रोकने में सबसे अच्छा रास्ता है. वन महोत्सव जीवन के उत्सव तरह मनाया जाता है.भारत में इसे धरती माता की रक्षा के लिये धर्म युद्ध की तरह शुरु किया गया था. वन महोत्सव का मतलब पेड़ो का उत्सव है. इसकी अनौपचारिक शुरुआत जुलाई 1947 में दिल्ली में सघन वृक्षारोपण हेतु आन्दोलन के रूप में बीड़ा उठाकर की गयी थी, जिसमें डा. राजेन्द्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरु सिरीखे राष्ट्रीय नेताओं ने शिरकत की थी. इसके साथ साथ यह उत्सव कई राज्यों में मनाया गया था. तब से भिन्न-भिन्न प्रजातियों के हजारों पौधे वन विभाग जैसी विभिन्न स्थानीय एजेंसियों की प्रभावशाली सहभागिता से लगाते है.
मित्रों,
पिछले वर्ष आप सबका वन महोत्सव के प्रति उत्साह देखकर मैं इस पोस्ट को इस बार समय रहते दे रहा हूँ. ताकि आप वृक्षारोपण के लिए स्थान का चयन, स्थान के अनुरूप पौधों की प्रजाति का चयन, क्षेत्र में आवश्यकता अनुसार खड्डे खुदवाने, मल्चिंग, जल संरक्षण, सुरक्षा आदि आदि अग्रिम कार्य (Advance action) जून महा तक करवा लें तथा अन्य साथियों को भी समय पर याद दिला दें.
माननीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को 15 अगस्त 2014 को लाल किले से सवच्छता अभियान का आह्वान करना पड़ा. Eco-friendly बजट की बातें आनी शुरू हो चुकी है. ये चीजें वनमहोत्सव के उद्देश्य की गंभीरता को स्पष्ट रेखांकित करती हैं. पर्यावरण की सुरक्षा केवल सरकार या सरकारी अमले के बलबूते पर नहीं हो सकती है. यह केवल और केवल आम जनता की जन भागीदारी से ही संभव है. वन महोत्सव को प्रभावी बनाने के लिए विद्यालयों के छात्रों के साथ प्रभात फेरी का आयोजन कर गाँव-गाँव गली-गली में वन महोत्सव के नारे(स्लोगन) लगवाएं, जिससे लोगों में जागरूकता सन्देश आसानी जावे.बंजर धरती करे पुकार, पेड़ लगाकर करो सिंगार.
वन उपवन कर रहे पुकार, देते हम वर्षा की बोछार.
सर साटे रूख रहे, तो भी सस्तो जाण.
कहते हे सब वेद-पुराण, एक वृक्ष दस पुत्र सामान.
धरती पर स्वर्ग हे वहाँ, हरे भरे वृक्ष हे जहाँ.
जहां हरयाली है, वहीं खुशहाली है.
वृक्ष प्रदूषण-विष पी जाते, पर्यावरण पवित्र बनाते.
पेड़ लगाएं, प्राण बचाएं.
कड़ी धूप में जलते हैं पाँव, होते पेड़ तो मिलती छाँव.
पेड़ो से वायु, वायु से आयु.
इस मौंके पर मैं वनाधिकारी होने के नाते पेड़ों की सदाश्यता की बात पुनः तरोताजा करना चाहूँगा. साथ ही पौराणिक साहित्य से दो उद्धरण देकर अपनी बात को विराम दूँगा. पेड़ हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला सब कुछ सहते हैं, फूलों, पत्तों और फलों का भार वहन करते हैं. सब कुछ सहन करके भी पेड़ एड़ी से चोटी तक जीवन पर्यन्त दूसरों को समर्पित रहते हैं. हमारे सुख के लिये पेड़ अपना तन भी समर्पित कर देते हैं. मरने के बाद भी यह मनुष्य के काम आते हैं. जरा सोचें … ये क्या करते हैं :
साँस के लिये ऑक्सिजन बनाते हैं.
धूप की पीड़ा और ठंड के कष्ट से बचाते हैं.
धरती का श्रृंगार कर सुंदर प्रकृति का निर्माण करते हैं.
पथिकों विश्राम-स्थल, पक्षियों को नीड़, जीव जन्तुओं को आश्रय स्थल देते हैं.
पेड़ अपना तन समर्पित कर गृहस्थों को इंर्धन, इमारती लकड़ी, पत्तो-जड़ों तथा छालों से समस्त जीवों को औषधि देते हैं.
पत्ते, फूल, फल, जड़, छाल, लकड़ी, गन्ध, गोंद, राख, कोयला, अंकुर और कोंपलों से भी प्राणियों की अन्य अनेकानेक कामनाएँ पूर्ण करते है.
कुलमिलाकर पेड़ हमारी पहली साँस से लेकर अंतिम संस्कार तक मदद करते हैं. ऐसे परोपकारी संसार में सच्चे संत ही हो सकते हैं. जो सारी बाधाएं स्वयं झेलकर दूसरों की सहायता करते हैं. हमारे पौराणिक साहित्य से दो उद्धरण : दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र तथा दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है.
-मत्स्यपुराण.
वृक्षों का सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिये ही है. ये स्वयं तो हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला सब कुछ सहते हैं, फिर भी ये हम लोगों की उनसे रक्षा करते हैं.
-श्रीमद्भागवत.
मेरे विचार से आप सभी विद्वान मित्रों को ये सारी बातें पहले से मालूम है और आप सब इन सबसे सहमत होंगे. इस नायाब मौंके पर अधिक से अधिक पेड़ लगाने व उनके रखरखाव की समझाइस जरुर करावें. इस महा अभियान को जन भागीदारी से सफल बनाया जा सकता है. थैंक्स.