वन नही तो हम नही essay in hindi
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जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया, लेकिन भूल गए कि इसका क्या नतीजा होगा? पर्यावरण विनाश के कुफलों से चिंतित मनुष्य आज अपनी गलती सुधारने की कोशिश में है। आइए हम भी कुछ योगदान करें।
जितने अधिक वन होंगे पर्यावरण उतना ही अधिक सुरक्षित होगा। पर्यावरण की सुरक्षा में जंगलों के महत्व को स्वीकार करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर इस साल की थीम है फारेस्ट-नेचर एट युअर सर्विस यानी ‘जंगल-प्रकृति आपकी सेवा में। इस थीम के पीछे वनों की उपयोगिता और उनके संरक्षण का भाव है। वनों के बगैर आज मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। वन संसाधनों और इनके संरक्षण के मामले में भारत धनी है। हालांकि यह भी सत्य है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण वनों को काफी क्षति पहुंची है लेकिन इधर हाल के वषरे में जागरूकता बढ़ी है और वनों की कीमत पर विकास की परंपरा थमी है। वैसे भी हमारे देश के कई सूबों में वनों और वन्य जीवों कासंरक्षण लोगों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दा भी है। देश में विकास गतिविधियों में इजाफे के बावजूद वन बढ़े हैं। इसलिए भारत के कदमों को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने विश्व पर्यावरण दिवस की थीम के क्रियान्वयन की मेजबानी भारत को सौंपी है।
विकास और वन
देश में वन संरक्षण कानून 1980 में बना। इससे पहले वनों के काटने पर कोई रोकटोक नहीं थी। कानून बनने के बाद विकास के लिए भी वनों को काटने की पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान है और एक पेड़ काटने के बदले में तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एक अध्ययन के अनुसार वन संरक्षण कानून बनने से पूर्व देश में प्रतिवर्ष एक लाख 43 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्रफल प्रतिवर्ष घटता था। कानून बनने के बाद इसमें कमी आई लेकिन अभी भी सालाना 30-35 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ता है। काटे गए वन क्षेत्रफल के एक तिहाई हिस्से की ही भरपाई सरकार कर पाई है।
यूकेलिप्टस से बचें
विशेषज्ञों का मानना है कि वनीकरण नीति में बदलाव की जरूरत है। वनीकरण के नाम पर हमें यूकेलिप्टस जैसे पेड़ लगाने से बचना चाहिए। बल्कि हमारी परंपरागत वन्य प्रजातियों के अनुरूप ही पौधे लगाने चाहिए ताकि विविधता कायम रहे। दूसरे, यूकेलिप्टस जैसी प्रजातियां ऐसी हैं जिनसे जमीन की उर्वरा शक्ति को क्षति पहुंच सकती है। बेहतर हो कि वनीकरण के दौरान नीम, अशोक के औषधीय पौधे लगें या जामुन, नीबू, आम के फलदार पेड़। कई शहरों में छोटे स्तर पर ऐसी पहल हुई है और वह बेहद सफल रही है। ये पेड़ फल, औषधि के साथ-साथ छाया भी प्रदान करते हैं।
वनों से फायदे
वनों से फायदे ही फायदे हैं। यह सब जानते हैं कि वे हमें ईधन देते हैं, ताजी हवा देते हैं और बारिश कराते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हमारे द्वारा पैदा होने वाले कार्बन डाई आक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों को वन सोख रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय के ताजा अध्ययन के अनुसार देश में उत्सर्जित होने वाली 11.25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों यानी करीब 13.8 करोड़ टन कार्बनडाई आक्साइड को जंगल चट कर रहे हैं। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से बचने की कोशिशें हो रही हैं, विश्व स्तर भारत जैसे विकासशील देश अमीर देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि या तो वे अपना उपभोग घटाएं या हमें मुआवजा दें।
आप भी बचा सकते हैं पर्यावरण
- निजी वाहनों की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तरजीह दें।
- बिजली से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करें।
- सीएनजी से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल करें।
- जहां संभव हो बॉयो डीजल का प्रयोग करें।
- अपने बगीचे और सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं।
- पानी का किफायत से उपयोग करें।
- पवन उर्जा, सौर उर्जा और जल उर्जा से चलने वाले उपकरणों को तरजीह दें।
- बिजली से चलने वाले उपकरणों को जितनी आवश्यकता हो, उतना ही इस्तेमाल करें।
- एयर कंडीशन और इस प्रकार की चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस उत्सर्जित होती है, जो वायुमंडल की ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचाती है।
- नदियों और अन्य जल स्त्रोतों को प्रदूषित न करें, उनमें कचरा न डालें।
- पॉलीथीन का इस्तेमाल बंद करें। इसकी जगह ईको-फ्रेंडली उत्पाद (कागज के थैले आदि) प्रयोग में लाएं।
- कूड़े को कूड़ेदान में ही फेंकें।
- ‘थ्री आर’ व्यवस्था- रिडय़ूस (पर्यावरण के लिए हानिकारक चीजों का इस्तेमाल कम करें), रियूज (चीजों को एक बार की बजाय कई बार इस्तेमाल करें) और रिसाइकल - को बढ़ावा दें।
उत्तर:
वनों को ठीक ही पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है। वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और खाद्य चक्र और ग्रह पर प्राकृतिक संतुलन में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं। वन पृथ्वी की सतह का लगभग 31% भाग कवर करते हैं। वे न केवल वन्य जीवन और पेड़ों के लिए बल्कि पृथ्वी पर कुछ दुर्लभ जानवरों और पौधों के लिए भी एक आवास हैं।
जंगल कई जंगली जानवरों जैसे हाथी, बाघ, शेर, चीता, गैंडा, भेड़िये आदि का घर हैं, जो अन्यथा विलुप्त हो जाएंगे यदि उन्हें जंगलों के बिना रहने के लिए बनाया जाता है। और स्वस्थ भोजन चक्र के लिए इन जानवरों का अत्यधिक महत्व है। प्रत्येक जानवर, चाहे वह मांसाहारी हो या शाकाहारी या सर्वाहारी, को इस भोजन चक्र को बनाए रखने में अपनी भूमिका निभानी होती है। चक्र में किसी भी तरह की गड़बड़ी से एक लहर प्रभाव पैदा होगा जो खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है जो अंततः जानवरों और मनुष्यों के विलुप्त होने की ओर ले जाता है।
दूसरे, वन मनुष्यों को उनके अस्तित्व के लिए लकड़ी, पोषक तत्व, दुर्लभ लकड़ी, भोजन, ईंधन और बहुत कुछ जैसे संसाधन प्रदान करते हैं। प्रारंभिक मानव भोजन और ईंधन के लिए पूरी तरह से जंगल पर निर्भर थे और खाने और जीवित रहने के लिए। लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य विकसित हुआ और उसके मानसिक क्षितिज का विस्तार हुआ, उसने विभिन्न अन्य संसाधनों का लाभ उठाना शुरू कर दिया, जो वनों ने हमें प्रदान किए थे, जिसमें कृषि उद्देश्यों के लिए वन भूमि को काटना, फर, सींग और अंगों के लिए जानवरों को मारना और शहरों का विस्तार करने के लिए वनों की कटाई अभियान चलाना शामिल था। गांव।
मानव जाति के इस लालच और गैरजिम्मेदारी के कारण दुनिया में वनों के आवरण में कमी आई है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़, मरुस्थलीकरण, जंगल की आग, विलुप्त होने, जैव विविधता का नुकसान और बहुत कुछ हो रहा है। मनुष्य हजारों वर्षों से वनों के संसाधनों का उपयोग कर रहा है। वन ने मनुष्य को जितना जीविकोपार्जन प्रदान किया है, मनुष्य ने जंगल को उतना वापस नहीं दिया जितना उसके पास होना चाहिए था। और मनुष्य के इस अति प्रयोग, असंतुलन और लालच ने पृथ्वी के प्राकृतिक चक्र में गड़बड़ी पैदा कर दी है।
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