वन प्राणी संरक्षण कानून को स्पष्ट कीजिए
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वन प्राणी संरक्षण कानून...
वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम (1972) भारत सरकार का एक अधिनियम है, जो वन्यजीवों को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने के लिए बनाया गया है। यह अधिनियम 9 सितंबर 1972 को लोकसभा में पारित किया गया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य लुप्त होते जा रहे वन्य प्राणियों के संरक्षण, पेड़ पौधों और पशुओं-पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम उस समय जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारतवर्ष में समान रूप से लागू होता था। वर्तमान समय चूँकि जम्मू-कश्मीर राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित हो चुका है, तो केंद्र सरकार के सारे अधिनियम इस पर भी लागू होते हैं।
- इस अधिनियम में समय-समय पर आवश्यक संशोधन किए जाते रहे हैं। अधिनियम में पहला संशोधन 1982 में किया गया था, उसके बाद 1986, 1991 और 2002 में भी इस नियम में कई संशोधन किए गए।
- नवीनतम एकदम ताजा तरीन हुए संशोधन में के अनुसार इस अधिनियम में प्रधानमंत्री के निर्देशन में वन्य जीवो के राष्ट्रीय बोर्ड के गठन का प्रावधान रखा गया है।
यह अधिनियम देश के वन्य जीवो को सुरक्षा प्रदान करता है और उनके अवैध शिकार और तस्करी पर अंकुश लगाता है। इस अधिनियम मुख्य प्रधान प्रावधान इस तरह हैं...
- संकटग्रस्त वन्य प्राणियों की सूची बनाकर उनके शिकार अवैध शिकार पर प्रतिबंध लगाना।
- लुप्त प्राय होते जा रही प्रजातियों को संरक्षण प्रदान करना।
- राष्ट्रीय स्तर के चिड़ियाघरों तथा अभयारण्यों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
इस नियम के उल्लंघन के तहत 3 वर्ष का कारावास और ₹25000 दंड का प्रावधान या दोनों हो सकते हैं।
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वन प्राणी संरक्षण कानून
- वनप्राणी संरक्षण कानूनवन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 भारत की संसद का एक अधिनियम है जो वनों के संरक्षण और वहाँ या सहायक या वहाँ से जुड़े मामलों के लिए प्रदान करता है।
- यह 1988 में और संशोधित किया गया था। यह कानून पूरे भारत में फैला हुआ है।
- वनों की कटाई को नियंत्रित करने के लिए 1980 का वन संरक्षण अधिनियम बनाया गया था।यह सुनिश्चित किया कि केंद्र सरकार की पूर्वानुमति के बिना वनभूमि को आरक्षित नहीं किया जा सकता है।
- 1980 का वन संरक्षण अधिनियम, जिसे 1988 में संशोधित किया गया था, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक है।
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