Hindi, asked by agarwalshalini363, 19 days ago

वन रहेंगे हम रहेंगे निबंध​

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Answered by simransingh8810
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वन: मानव – जीवन के संरक्षक-

मानव-जीवन का एक-एक पल वनों का ऋणी है। जन्म से लेकर मृत्यु तक वे हमारी सहायता करते हैं, रक्षा करते हैं। जन्म के समय यदि पालना-हिंडोला लकड़ी का होता है तो मृत्यु के समय शरीर को ढोनेवाला विमान भी लकड़ी का होता है।

वृक्षों की लकड़ी जलावन से लेकर फैक्ट्रियों में विभिन्न रूपों में काम आती है। वनों से वर्षा का जल खेती योग्य भूमि में पड़कर हमारे पेट भरने को अनाज उपजाता है। हमारी-रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की ये तीनों मूलभूत आवश्यकताएँ वन ही पूरी करते हैं। मनुष्य यदि जीवित है तो वनों की कृपा पर।

वन-संरक्षण की आवश्यकता-

वन हमें दैनिक जीवन में प्रयोग में आनेवाली अनेकानेक वस्तुएँ उपलब्ध कराते हैं। रबड़, गोंद, फल-फूल, कागज, पत्ते, छाल आदि सब इन्हीं से प्राप्त होते हैं। वन प्राकृतिक सम्पदा के भण्डार हैं। वनों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है – वातावरण को शुद्ध रखना, वर्षा लाना तथा बाढ़ रोकना।वैज्ञानिक परीक्षण बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में मौसमी अनियमितता आने का कारण केवल वनों का अन्धाधुन्ध काटा जाना ही है। देश में आज 23% भू-भाग पर वन हैं, जबकि 33% भू-भाग पर वनों की आवश्यकता है। सूखा और अकाल का कारण भी वनों की कटाई ही है।

वायु-प्रदूषण और जल – सन्तुलन में वनों की उपयोगिता-

वन प्राणवायु और जल के स्रोत हैं। वृक्ष बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो हमारे साँस लेने, जीवित रहने के काम आती है। आज शहरों में वाहनों, फैक्ट्रियों आदि से उत्पन्न धुआँ वायु-प्रदूषण का कारण बना हुआ है। जितना प्रदूषण बढ़ रहा है, उतनी ही वृक्षारोपण की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। जल-सन्तुलन के लिए भी वनों की उपयोगिता कम नहीं है। एक ओर घने वृक्ष जहाँ वर्षा लाते हैं, वहीं दूसरी ओर मजबूत वृक्ष बाढ़ रोकते हैं। वृक्ष भूमि को मरुस्थल बनने से रोकते हैं। ये नमी सोखकर भूमि की भीतरी पर्त तक पहुँचाते हैं। इस तरह वृक्ष भू-गर्भ जल का स्तर भी बढ़ाते हैं। भूमि की नमी उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ाती है।वन हमारी सृष्टि के प्राकृतिक स्वरूप की रक्षा करते हैं।वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर अनेक वन काटकर मनुष्य ने आज चारों ओर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए हैं। वनों के कटते जाने से प्राकृतिक पदार्थों जैसे लकड़ी, कोयला, गोंद आदि का अभाव होता जा रहा है। चारों ओर अधिक-से-अधिक इन वस्तुओं को जमा करके रख लेने की आपाधापी मची हुई है। पशु-पक्षियों के घर उजाड़ दिए गए हैं।

वन रहेंगे तो हम रहेंगे –

यदि हमने जनसंख्या के अनुपात में वनों का रोपण न किया, उन्हें काटकर, जलाकर नष्ट करना बन्द न किया तो जिस प्रकार आज कुछ पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं’ उसी प्रकार से ‘मानव’ नाम का यह प्राणी भी अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में पड़कर अपने अस्तित्व को मिटा लेगा। इस प्रकार वनों के महत्त्व और उपयोगिता को ध्यान में रखकर जीवन जीना होगा और यह गाँठ बाँधनी होगी कि’ वन रहेंगे तो हम रहेंगे।

Answered by sarah1522sis
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hope it's helpful to you

thank you....

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