Social Sciences, asked by Harinder03899, 7 months ago

वन सीधे तौर पर हमारी सहायता कैसे करते हैं​

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Answered by anuj1412
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स्वयं सहायता समूह

स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज की उत्पत्ति, अवधारणा एवं उद्देश्य

स्वयं सहायता समूह-बैंक लिकेंज-नीति निर्देशिका

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बैंक लिंकेज के सन्दर्भ में शंकाएं एवं चिंताएँ

स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज की उत्पत्ति, अवधारणा एवं उद्देश्य

स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज की उत्पत्ति, अवधारणा को समझने के पहले यह आवश्यक हो जाता है कि सर्वप्रथम स्वयं सहायता समूह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं इसकी अवधारणा को समझें।

गाँव में सामाजिकता पर गौर करें तो पाते हैं कि किसी भी कार्य में मदद लेने और देने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जैसे “ सामुदायिकता की भावना” आदिवासी समाज की सबसे बड़ी विशेषता है और यह इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलुओं के तार से भी जुडी हुई है। परन्तु आज के पैसा-बाजार प्रतियोगिता पूर्ण युग में में इसका फैलाव, विकास की प्रक्रिया में सुसंगठित होकर नहीं किया गया। इसके बावजूद सामुदायिकता गरीब व सामाजिक तौर से पिछड़े वर्गों में आज भी किसी- न-किसी रूप में विद्यमान है।

स्वयं सहायता समूह का इतिहास देखने पर यह पता चलता है कि मुख्य रूप से इसकी शुरुआत देश की प्रतिष्ठित स्वैछिक संस्थाएं जैसे सेल्फ एम्पलाइड वीमेन एशोसिएशन, (SEWA) अहमदाबाद, मयराडा, बंगलौर आदि के माध्यम से हुई थी। मयराडा, बंगलौर के इतिहास को देखा जाये तो इस संस्था ने वर्ष 1968 से ही सामाजिक कार्य के प्रति अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। शुरुआत में मयराडा ने मुख्य रूप से चीन युद्ध के पश्चात् तिब्बत से आये तिब्बतियों को पुनर्स्थापित करने का कार्य शुरू किया। दूसरे दौर में इस प्रकार वर्ष 2000 तक लाखों लोगों को सुविधाएँ देकर उनके जीवन स्तर को उठाने का लक्ष्य बनाया।

उपयुक्त कार्यक्रम में स्वयं सहायता के सन्दर्भ में मुख्य रूप से मयराडा ने निम्न मुद्दों पर विशेष जोर दिया। जैसे_

सामुदायिक क्रियाशील समूह के माध्यम से ग्रामीण शाख पद्धति।

महिलाओं को संगठित करना जिससे स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा सके।

इस प्रकार अनुभव के आधार पर निम्नलिखित बातें सीखने की दृष्टि से उभर कर आयी:

1) समुदाय जिनकी आर्थिक एवं सामाजिक पहलुओं में समानता हो एक छोटे समूह के माध्यम से अपनी-अपनी आवश्यकताओं, समस्याओं, भावनाओं, अपेक्षाओं आदि उम्मीदों को लेकर निरंतर प्रयास करते हैं। अतः अपनी-अपनी प्रक्रिया में उनके उत्साह को निरंतर जागृत करना एक महत्वपूर्ण अंग है।

2) समान स्तर के सदस्य वही सीखने का प्रयास करते हैं जो उन्हें रुचिकर लगता है।

3) इन समान स्तरीय समूहों के सदस्यगण अपने-अपने ज्ञान के प्रति जागरूकता का स्वयं के अंदर की क्षमता को विकसित कर अपने व्यवहार में लाने के प्रति उत्साहित रहते हैं।

4) यह सदस्य-समूह मुख्य रूप से अपने समूह के द्वारा स्वचालित होकर अग्रसर होने का प्रयास करते हैं।

5) यह समान स्तर के समूह के सदस्यों के साथ-साथ दूसरों को भी विकास की ओर लाना चाहते हैं।

स्वयं सहायता समूह का औचित्य:

गाँव में कुल आबादी का 75% से भो अधिक आबादी का प्रमुख आधार खेती है। ऐसे ग्रामीणों की अनेक समस्याएं हैं। पहली यह कि खेती के अतिरिक्त अन्य आय का साधन इनके पास नहीं होते हैं। दूसरा यह कि खेती में 5 से 6 माह तक काम मिलता है, इसलिए बचे समय में ग्रामीणों को आय के लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है और आवश्यकता पड़ने पर इन्हें अपनी जमीन व गहनों को गिरवी रखनी पड़ती है, और परिस्थिति से मजबूर होकर इसे छुड़ा भी नहीं पाते हैं। इसी बीच यदि अन्य समस्याएं (बीमारी, मृत्यु. पर्व, शादी) आ जायें तो बंधक रखने की सीमाएं बढ़ जाती हैं। बैंक शाखाओं की वृहद नेटवर्क होते हुए भी ग्रामीणों की पहुँच वहाँ तक नीं हैं। चूँकि निर्धनों की जरूरतें छोटे ऋणों से सम्बन्धित होती हो, साथ ही साथ उनकी आवश्यकताएँ उपयोग और उत्पादन दोनों उद्देश्यों से जुड़ी है, बैंक वाले इसे खतरा मानते हैं और उधार देने से हिचकते हैं।

इस संकट स उभरने के लिए एक अकेला व्यक्ति तो सम्भवतः कुछ नहीं कर सकता है। परन्तु कुछ लोग मिलकर अपनी छोटी आय से थोड़ी-थोड़ी बचत करते-करते एक पूजी जमा कर सकते है। इसी पूंजी से वे एक दूसरे की मदद करते हैं और इसका उपयोग करके धीरे-धीरे जमीन छुडाते हैं। स्पष्टतः इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है। परन्तु स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से कुछ हद तक अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं।

स्वयं सहायता समूह समान सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि वाले 10-20 सदस्यों का एक स्वैछिक समूह है जो-:

नियमित रूप से अपनी आमदनी से थोड़ी-थोड़ी बचत करते हैं।

व्यक्तिगत राशि को सामूहिक विधि में योगदान के लिए परस्पर सहमत रहते हैं।

सामूहिक निर्णय लेते हैं।

सामूहिक नेतृत्व के द्वारा आपसी मतभेद का समाधान करते हैं।

समूह द्वारा तय किये गए नियमों एवं शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराते हैं।

भारत में स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम की उत्पत्ति एवं अवधारणा :

अनौपचारिक ऋण प्रणाली के लचीलेपन, सुग्रहिता, अनुक्रियाशीलता जैसे गुणों को औपचारिक ऋण संस्थाओं की तकनीकी क्षमताओं और वित्तीय संसाधनों के साथ संयोजित करने और ऋण वितरण प्रणाली में सकरात्मक नवीनतायें लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने फरवरी 1992 में स्वयं सहायता समूहों को वाणिज्य बैंकों से जोड़ने के लये पायलट परियोजना शुरू की थी। जिसमें (बाद में) सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को भी शामिल कर लिया गे। यह जुडाव इस विचार से भी था कि औपचारिक और अनौपचारिक ऋण प्रणाली के अच्छे गुणों को समायोजित कर सके।

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