वनो तथा जनजातियों लोगों पर बांधों के प्रभाव का वर्णन कीजिए ढाई सौ शब्दों में
Answers
Explanation:
सम्बंध में सामान्य जानकारी दी गई है। आदिवासियों का वनों से सम्बंध एवं वन क्षेत्रों के साथ आदिवासियों के विकास के सम्बंध में विचार किया गया है। वर्तमान समय में वन विकास की वही अवधारणा ग्राह्य हो सकती है जिसमें आदिवासियों का हित सुरक्षित रहे। राष्ट्रीय वन नीति-1894 एवं 1952 द्वारा आदिवासियों को वनों का विरोधी मानते हुए उनके अधिकारों में कटौती की गई। इससे आदिवासियों का हित प्रभावित हुआ तथा वे भावनात्मक रूप से वनों एवं वन कर्मियों के विरुद्ध हो गये। वनवासियों एवं अन्य अनुसूचित जनजाति की समस्याओं के दृष्टिगत भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति व अन्य पारम्परिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 पारित किया गया है। इसमें वनवासियों के अधिकारों को व्यापक मान्यता प्रदान की गई है। इस अधिनियम द्वारा वनों एवं आदिवासियों के बीच पारम्परिक सम्बंध विकसित करने की दिशा में पुन: प्रभावी कदम उठाया गया है।
आदिवासियों एवं वनों का घनिष्ठ सम्बंध है। हमारी संस्कृति मूलत: अरण्य संस्कृति रही है। वन एवं वन्य जीवों को वहाँ के स्थानीय वनवासियों द्वारा अपने परिवार का अंग माना गया। वनवासी समाज द्वारा वनों में स्वंत्रतापूर्वक रहकर वहीं से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुये सदैव वनों को संरक्षित करने का कार्य किया है। विगत कुछ दशकों में आदिवासियों एवं वनों के बीच दूरी बढ़ी है। वे वनवासी जो वनों एवं वन्यजीवों के स्वाभावितक मित्र थे, उन्हें वन का विरोधी मानते हुए उनके परम्परागत अधिकारों में कटौती की गई। हाल ही में भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति व अन्य पारम्परिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 के माध्यम से पुन: आदिवासियों को उनका पारम्परिक अधिकार दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाया गया।
आदिवासी एवं वनों के बीच प्रगाढ़ सम्बंधों का ध्यान रखते हुए वन विकास निगमों सहित वन प्रबंध के लिये उत्तरदाई सभी अभीकरणों का प्रधान कार्य वनों में तथा उसके चारों ओर रहने वाले आदिवासियों को लाभदायक रोजगार उपलब्ध कराने के अतिरिक्त वनों की सुरक्षा, पुनरुद्धार एवं विकास के लिये आदिवासियों के लिये सहायता दिया जाना चाहिये। आदिवासियों के परम्परागत अधिकारों एवं हितों की रक्षा करते समय वानिकी कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिये। वनों में ठेकेदारों के स्थान पर आदिवासी सहकारी समितियों, श्रमिक सहकारी समितियों अथवा राजकीय निगम जैसे संस्थान से कार्य कराया जाना चाहिये।
वनों पर आधारित उद्योग
वनों पर आधारित उद्योगों की स्थापना और उनको कच्चे माल की आपूर्ति का निर्धारण निम्न बातों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए -
- जहाँ तक संभव हो, वन आधारित उद्योग को उस फैक्टरी और व्यक्तियों के बीच सीधा सम्बंध स्थापित करके ऋण, निरन्तर तकनीकी सलाह और अंतिम रूप से कटाई और परिवहन सेवाओं सहित निवेशों के साथ, जो व्यक्तियों की सहायता के लिये कच्चे माल पैदा कर सकते हैं, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये कच्चा माल पैदा करना चाहिये।