Hindi, asked by anjalikumawat71, 1 year ago

वन्य जीवों के संरक्षण के लिए आप क्या करेंगे? अपने शब्दों में लिखिए |


anjalikumawat71: plz fast.....

Answers

Answered by sakshilohmod333
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Vanya Jeev Sanrakshan

प्रस्तावना-भारत में हिमालय की ऊंची पर्वतीय एवं तराई वाली जमीन, पठारी प्रदेश एवं दलदली क्षेत्र तक सभी तरह की परिस्थियां पायी जाती हैं। यही कारण है कि यहां अनेक प्रकार की वनस्पतियां एवं प्राणी पाये जाते हैं।

विलुप्तियां- प्राचीन काल में पृथ्वी पर सरीसृपों एवं डाइनोसोरों का विलुप्तीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया का अंग समझा जाता था परन्तु वर्तमान में इनके वर्तमान में इनके विलुप्तीकरण का कारण मानवीय गतिविधियों एवं उसके क्रिया-कलापों को माना गया है। अतः संरक्षण एवं परीक्षण का उतरदायित्व भी मानव का ही है।

 

आज वैधानिक उन्नति एवं औद्योगिक विकास से पृथ्वी के पर्यावरण को बहुत हानि उठानी पड़ी है। इसके फलस्वरूप पर्यावरण के विभिन्न प्रकार के असन्तुलन और गड़बड़ियां हुई हैं।

सांपों, छिपकलियों, बिच्छुओं एंव शेरों की खालों आदि जीवों की विदेशो को तस्करी होती है। गैंडे का उसके सींग के लिए और हाथी का उसके दांतों के लिए निरन्तर शिकार किया जाता है।

संरक्षण का अभाव- आज भारत में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए हरसम्भव प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए पूरे देश में राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, पक्षी अभयारण्य और अन्य जीव अभयारण्यों की स्थापना की गई है।

उद्यान के महत्व- राष्ट्रीय प्राणी उद्यान देश के सभी भागों में फैले हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-जिमकार्वेट (उतरप्रदेश-हाथी, चीता, चीतल और नील गाय), काजीरंगा (असम-गैंडा, और जंगली भैंसा), टंडोवा (महाराष्ट्र-बाघ, तेन्दुआ, रीछ और गौर), कान्हा किसली (मध्य प्रदेश-बाघ, गौर बारहसिंगा), गिर(गुजरात-एशियाई सिंह), बन्नरधट्टा (कर्नाटक-हाथी, रीछ, बार्किंग, डीअर) आदि।

पक्षी अभयारण्य में भरतपुर (राजस्थान) के समीप धना के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य का सर्वप्रथम स्थान है। यहां सर्दी के मौसम में सैकड़ों तरह के विदेशी पक्षी आते हैं और लगभग पांच-छह महीने के प्रवास के बाद अपने देश लौट जाते हैं। जलीय जन्तुओं में मगरमच्छ एवं घड़ियाल के प्रजनन तथा संवद्र्वन के लिए भी अनेक स्थानों पर केन्द्र स्थापित किये गये हैं जो उड़ीसा एवं राजस्थान में स्थित हैं।

उपसंहार- यद्यपि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार की ओर से त्रीव गति से प्रयास किये जा रहे हैं, परन्तु अभी भी इस दिशा में सुधार की आवश्यकता है। जन्तुओं की तस्करी करने वालों के लिए सख्त कानून बनाना चाहिये। पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले उद्योगों की स्थापना हेतु सुरक्षात्मक उपायों को कानूनन अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।

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