वन्य प्रापियो का सौरक्षण करना हम सबकी जिम्मेदारी हे
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सरकार ने सन 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित करके बाघों के शिकार पर रोक तो लगाई, लेकिन हालात अभी भी वैसे ही बने हुए हैं, अगर कुछ बुनियादी बातों पर गौर किया जाए तो परिणाम बदल सकते हैं। बाघों के अवैध शिकार पर कड़ी नजर, लोगों में इस बात की जागरुकता पैदा करना कि बाघों का संरक्षण मानव जाति के ही हित में है, क्योंकि इको सिस्टम में संतुलन और वनों के पास रहने वाले लोगों की रोजमर्रा की जरूरत को देखते हुए बाघों का होना भी जरूरी है। 70 के दशक में जहाँ ये संख्या 1200 पहुँच गई थी वो 90 के दशक में 3500 हो गई। लेकिन इसके बाद कैसे वन्य जीव संरक्षण के नियम और कानून को नजर अंदाज किया गया, इसका अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि 1994 से 2010 तक हमने 923 बाघ खो दिए हैं।
फिर 2008 में प्रस्तुत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2001-02 में बाघों की संख्या 3642 थी जो 2008 आते-आते घटकर 1411 हो गई। वन्य जीव संरक्षण के लिये उठाए गए कदम कुछ हद तक कारगर साबित हुए, भारत में पिछले एक दशक के दौरान पहली बार बाघों की संख्या बढ़ी है और 2,226 तक पहुँच गई, जो काफी खुशी की बात है। दुनियाभर में 5241 बाघ हैं जिसमें अकेले भारत में 2,226 बाघ हैं। लेकिन अब भी बाघ इंसानों का शिकार बने हुए हैं, शिकार के आँकड़ों में कमी तो आई है लेकिन शिकार होना या बाघों का मारा जाना बंद नहीं हुआ। जहाँ 1994 में 121 बाघ शिकार हुए, वहीं 2015 में इतनी जागरूकता और अधिनियमों की सख्ती के बाद भी 25 बाघ मारे गए। वन्य जीवों का अगर संरक्षण न हो रहा होता, तो शायद कुदरत का बनाया इतना खूबसूरत और शानदार जानवर अब तक लुप्त हो चुका होता।
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