Vano ke Nas per essay
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वनों की कटाई की समस्या किसी एक की समस्या नहीं है अपितु सम्पूर्ण प्राणी जगत की समस्या है। यदि इस समस्या से निपटने के लिए कुछ नहीं किया गया तो पूरा प्राणी जगत समाप्त हो जायगा।
वनों की कटाई जंगल के बड़े हिस्से में इमारतों के निर्माण जैसे उद्देश्यों के लिए पेड़ों को काटने की प्रक्रिया है। इस जमीन पर फिर से पेड़ों को लगाया नहीं जाता। आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक युग के विकास के बाद से दुनिया भर के लगभग आधे जंगलों को नष्ट कर दिया गया है। आने वाले समय में यह संख्या बढ़ने की संभावना है क्योंकि उद्योगपति लगातार निजी लाभ के लिए वन भूमि का उपयोग कर रहे हैं। लकड़ी और वृक्षों की अन्य घटकों से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए बड़ी संख्या में वृक्षों को भी काटा जाता है। वनों की कटाई के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन्हीं कारणों से मिट्टी का क्षरण, जल चक्र का विघटन, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान होता है। वनों की कटाई की ओर यदि कोई ध्यान नहीं दिया गया तो यह बहुत विकराल रूप धारण कर लेगा। वन जीवन के लिए बहुत ही अहम् है जब तक हम सभी इस बात को नहीं समझ लेते वनों की कटाई रुकना असंभव है। हम वनों को काट कर अपना ही नहीं अपनी आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी खतरे में डाल रहे हैं।
प्राय: वनों के समाप्त होने का मुख्य कारण इनका अंधाधुंध काटा जाना है। बढ़ती हुई जनसंख्या की उदरपूर्ति के लिए कृषि हेतु अधिक भूमि उपलब्ध कराने के लिए वनों का काटा जाना बहुत ही साधारण बात है। वनों को इस प्रकार नष्ट करने से कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, स्वस्थ वातावरण (पर्यावरण) के लिए 33 प्रतिशत भूमि पर वन होने चाहिए। इससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है। दुःख और चिंता का विषय है कि भारत में सरकारी आँकड़ों के अनुसार मात्र 19.5 प्रतिशत क्षेत्र में ही वन हैं । गैर-सरकारी सूत्र केवल 10 से 15 प्रतिशत वन क्षेत्र बताते हैं। हम यदि सरकारी आँकड़े को ही सही मान लें तो भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। चिंता का विषय यह है कि वनों के समाप्त होने की गति वनरोपण की अपेक्षा काफी तेज है। इन सारी स्थितियों को ममझने के वाद हमें कारगर उपायों पर विचार करना होगा।