Vapsi kahani summary
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वापसी. (उषा प्रियंवदा). डा. वीनू भल्ला. दिल्ली विश्वविधालय. परिवेश और कथा यात्रा. छठे दशक में लिखी गयी कहानी को न वेफवल साहितियक विध ...
वापसी
'वापसी' उषा प्रियम्बदा की लिखी बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है I गजाधर बाबू रेलवे में काम करते हैं I गणेशी उनका प्रिय सेवक है Iपरिवार दूर शहर में रहता है ताकि एक जगह रहकर बच्चों की पढाई लिखी हो सके क्यूंकि इनको तो रेल के साथ हमेशा जाना है ,आना है Iगजाधर बाबू ठीक एक तारीख को वेतन का तीन हिस्सा घर भेज देते हैं I शेष अपने लिए ,प्रत्येक दिन वे छुट्टियाँ गिना करते हैं I साल में 2-3 बार वे घर आ पाते हैं I इसी तरह दिन महीने साल बीतते जाते हैं I घर परिवार के साथ रहना उन्हें स्वप्न जैसा महसूस होता है Iकभी -कभी वे सोचते हैं अच्छा बच्चे तो अच्छे से पढ़ रहे हैं न I मुझे त्याग करना भी पड रहा तो कोई बात नहीं Iजीवन के सारे सुख दुःख वे गणेशी से बताया करते हैं Iसमय गुजरता गया और अब वे सोचते हैं बहुत नौकरी कर ली बाकी तीन वर्ष भी कट ही जायेंगे I चिट्ठियां लिखा करते हैं Iपत्नी और बच्चों को लिखते हैं कि अब कुछ ही दिनो की तो बात है हम सब साथ होंगे I कोई एक क्षण ऐसा नहीं जाता जिसमे उन्होंने परिवार को याद न किया हो I
और वो समय आ जाता है जिसका गजाधर बाबू को बरसों से इंतज़ार था I वो उनके अवकाश प्राप्ति का दिन था ,वो बहुत खुश हैं लेकिन गणेशी रोते भी जा रहा है और उनका सामान भी बांधता जा रहा है Iजल्दी जल्दी बेसन के गरम गरम लड्डू बनाकर रास्ते के लिए तैयार कर देता है I गजाधर बाबू उसे सांत्वना भी देते हैं I और उसे अपने घर आने के लिए भी बोलते हैं कहते हैं चलो रेल के इस धड-धड से छुट्टी तो मिली I बहुत ख़ुशी से वो घर पहुँचते हैं तीनों बच्चे और पत्नी सबों को देखकर इन्हें लगता है कि जो ख़ुशी वे ढूंढ रहे हैं वो कहा है I पत्नी से कहते हैं चलो मैं तुम्हारे पास आ ही गया उम्मीद न थी I लो ये लड्डू बाँट देना गणेशी ने बनाये हैं Iउनके सोने का इंतज़ाम भण्डार घर में किसी तरह एक चारपाई जिसमे समां सके वहीँ किया गया है I
वो तब भी खुश हैं I पत्नी को अपने साथ बैठने बोलते हैं कि बहुओं को काम करने दो तुम मेरे साथ बैठो इतने दिन हमने अलग ही रहकर तो बिताये हैं Iतबतक रसोई से कुछ गिरने की आवाज़ आती है I पत्नी तुरंत बोल पड़ती है लगता है बिल्ली ने दूध की पतीली गिरा दी मैं देखकर आती हूँ I
गजाधर बाबू मुस्कुराकर बोलते हैं अरे छोडो न भाग्यवान तुम अब इस पचड़े में न पड़ो वे संभाल लेंगी I पत्नी बोलती है मुझे बिन बात के बैठना अच्छा नहीं लगता I ये थोडा मायूस हो जाते हैं Iशाम को एक बार अन्दर के आँगन की ओर जाते है तो देखते हैं छोटा भाई किसी फिल्म की नक़ल कर रहा है Iऔर बहुएँ हंस हंस कर दुहरी हुई जा रही हैं बेटी भी वहीँ है इनके आते ही सब चुप I ये मुस्कुराकर बोलते हैं तुमलोग हंसो बोलो मुझे अच्छा लग रहा है लेकिन सब अपने अपने कमरे में चले जाते हैं I शाम को बेटी सरोज कहीं निकलती है प्रायः रोज़ निकलती है,तो वे पत्नी से कहते हैं ,कि शाम के वक़्त लड़कियों का निकलना ठीक नहीं तुम सरोज को रोकती क्यूँ नहीं I ये झल्ला उठती है "तुम्हे तो कोई काम है नहीं ,दिन रात टोक -टाक में ही पड़े रहते हो I अगली सुबह वो अपना सामान बांधते हैं और पत्नी से पूछने पर कहते हैं ,"वहीँ गणेशी के पास जा रहा हूँ ,वो मेरा बहुत ख्याल रखता है I
मुझे वहां छोटा -मोटा काम भी मिल रहा हैं I अच्छा है तुमलोगों को भी कुछ पैसे मिल जायेंगे I फिर वही धड धड की आवाज़ और घर आने का सुखद अहसास उन्हें अतीत की ओर बार -बार धकेल रहा है I सिर्फ सोचते हैं गणेशी बहुत खुश होगा "I