Sociology, asked by abhishekkurrey81, 4 months ago

वर्ग संघर्ष के कारकों की व्यख्या कीजिए

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Answered by Arpita1678
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Explanation:

वर्ग संघर्ष (अंग्रेज़ी: Class struggle) मार्क्सवादी विचारधारा का प्रमुख तत्व है। मार्क्सवाद के शिल्पकार कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने लिखा है, " अब तक विद्यमान सभी समाजों का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।"

मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत ऐतिहासिक भौतिकवाद की ही उपसिधि है ओर साइर्थ ही यह अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत के अनुकूल है। मार्क्स ने आर्थिक नियतिवाद की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति इस बात में देखी है कि समाज मे सदैव ही विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है। एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है ओर दूसरा वह जो केवल शारिरिक श्रम करता है। पहला वर्ग सदैव ही दूसरे वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार समाज के शोषक ओर शोषित - ये दो वर्ग सदा ही आपस मे संघर्षरत रहे हैं और इनमें समझोता कभी संभव नहीं है।

आधुनिक समाज में आय के साधन के आधार पर तीन महान् वर्गों का उल्लेख किया जा सकता है। इनमें प्रथम वे हैं जो श्रम शक्ति के अधिकारी हैं, दूसरे वे हैं जो पूंजी के अधिकारी हैं और तीसरे वे जो मजींदार हैं। इन तीन वर्गों की आय के साधन क्रमश: मजदूरी, लाभ और लगान हैं। मजदूरी कमाने वाले मजदूर, पूंजीपति और जमींदान उत्पादन के पूंजीवादी तरीके पर आधारित आधुनिक समाज के तीन महान् वर्ग हैं।

1. आधुनिक युग में, मार्क्स के अनुसार, इन तीनों वर्गों का जन्म बड़े पैमाने पर पूंजीवादी उद्योग-धन्धे के पनपने के फलस्वरूप हुआ है। पूंजीवादी क्रान्ति का यही प्रत्यक्ष प्रभाव और सर्वप्रमुख परिणाम है। एक राष्ट्र में औद्योगीकरण तथा श्रम विभाजन के फलस्वरूप सर्वप्रथम औद्योगिक तथा व्यावसायिक श्रम कृषि श्रम से और गांव शहर से पृथक हो जाता है। इसके फलस्वरूप अलग-अलग स्वार्थ समूहों का भी जन्म होता है। श्रम विभाजन और भी अधिक विस्तृत रूप से लागू होने पर व्यावसायिक श्रम भी औद्योगिक श्रम से पृथक हो जाता है। साथ ही श्रम विभाजन के आधार पर ही उपर्युक्त विभिन्न वर्गों में निश्चित प्रकार के श्रम में सहयोग करने वाले व्यक्तियों में भी विभिन्न प्रकार के विभाजन हो जाते हैं। इन विभिन्न समूहों की सापेक्षिक स्थिति, कृषि, उद्योग तथा वाणिज्य का वर्तमान स्तर व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को भी निश्चित करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वे व्यक्ति, जो उत्पादन कायर्स में क्रियाशील हैं, कुछ निश्चित सामाजिक तथा राजनीतिक सम्बन्ध को स्थापित करते हैं। इस प्रकार वर्गों का जन्म जीविका-उर्पाजन के आर्थिक साधन के अनुसार होता है।

अत: हम यह कह सकते हैं कि विभिन्न प्रकार के उत्पादन कार्यों में लगे हुये व्यक्ति समूहों में बंट जाते हैं। पर इन सबकी एकमात्र पूंजी श्रम ही होती है और अपने श्रम को बेचकर ही वे अपना पेट पालते हैं; इस कारण उनको मेहनतकश या श्रमिक-वर्ग कहा जाता है। इसके विपरीत समाज में एक और वर्ग होता है जोकि पूंजी का अधिकारी होता है और वह उसी से अन्य लोगों के श्रम को खरीदना है। यही पूंजीपति वर्ग है।

2. अत: मार्क्स का मत है कि मूल रूप से आर्थिक उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर समाज के दो वर्ग प्रमुख होते हैं। उदाहरणार्थ, दासत्व युग में दो वर्ग दास और उनके स्वामी थे, सामन्तवादी युग में दो प्रमुख वर्गों की सर्वप्रमुख विशेषता यह होती है कि इनमें से एक वर्ग के हाथों में आर्थिक उत्पादन के समस्त साधन केन्द्रीकृत होते हैं जिनके बल पर यह वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता रहता है जबकि वास्तव में यह दूसरा वर्ग है। आर्थिक वस्तुओं या मूल्यों का उत्पादन करता है। इससे इस शोषित वर्ग में असंतोष घर कर जाता है और वह वर्ग-संघर्ष के रूप में प्रकट होता है।

वर्ग संघर्ष की प्रक्रिया

1. वर्ग और वर्ग संघर्ष - मार्क्सवादी विचार के अनुसार मनुष्य साधारणतया एक सामाजिक प्राणी है, परन्तु अधिक स्पष्ट और आर्थिक रूप में वह एक ‘वर्ग-प्राणी’ है। मार्क्स का कहना है कि किसी भी युग में, जीविका उपार्जन की प्राप्ति के विभिन्न साधनों के कारण पृथक-पृथक वर्गों में विभाजित हो जाते हैं और प्रत्येक वर्ग के एक विशेष वर्ग-चेतना उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, वर्ग का जन्म उत्पादन के नवीन तरीकों के आधार पर होता है। जैसे ही भौतिक उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन होता है वैसे ही नये वर्ग का उद्भव भी होता है। इस प्रकार एक समय की उत्पादन प्रणाली ही उस समय के वर्गों की प्रकृति को निश्चित करती है।

2. वर्ग निर्माण के आधार (Basis of Class Formation) - आदिम समुदायों में कोई भी वर्ग नहीं होता था और मनुष्य प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयोग करते थे। जीवित रहने के लिए आवश्यक वस्तुओं का वितरण बहुत कुछ समान था क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं से कर लेता था। दूसरे शब्दों में, प्रकृति द्वारा जीवित रहने के साधनों का वितरण समान होने के कारण वर्ग का जन्म उस समय नहीं हुआ था पर शीघ्र ही वितरण में भेद या अन्तर आने लगा और उसी के साथ-साथ समाज वर्गों में विभाजित हो गया। मार्क्स के अनुसार समाज स्वयं अपने को वर्गों में विभाजित हो गया। मार्क्स के अनुसार समाज स्वयं अपने को वर्गों में विभाजित कर लेता है- यह विभाजन धनी और निर्धन, शोषक और शोषित तथा शासक और शासित वर्गों में होता है।

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