History, asked by jitendrakorange55, 3 months ago

वराहमिहिर यांनी लिहिलेला ग्रंथ​

Answers

Answered by sshubhangi272
9

answer

वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। यह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे।

उज्जैन में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है।वराहमिहिर का जन्म सन् ४९९ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। यह परिवार उज्जैन में शिप्रा नदी के निकट कपित्थ (कायथा) नामक गांव का निवासी था। उनके पिता आदित्यदास सूर्य भगवान के भक्त थे। उन्हीं ने मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई। कुसुमपुर (पटना) जाने पर युवा मिहिर महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले। इससे उसे इतनी प्रेरणा मिली कि उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। गुप्त शासन के अन्तर्गत वहां पर कला, विज्ञान और संस्कृति के अनेक केंद्र पनप रहे थे। वराह मिहिर इस शहर में रहने के लिये आ गये क्योंकि अन्य स्थानों के विद्वान भी यहां एकत्र होते रहते थे। समय आने पर उनके ज्योतिष ज्ञान का पता विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय को लगा। राजा ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की, यहां तक कि वह यूनान तक भी गये। सन् ५८७ में महान गणितज्ञ वराहमिहिर की मृत्यु हो गई।

Answered by sanket2612
0

Answer:

वराहमिहिरा (c. 505 - c. 587), ज्याला वराह किंवा मिहिरा देखील म्हणतात, हे एक प्राचीन भारतीय ज्योतिषी, खगोलशास्त्रज्ञ आणि बहुविज्ञानी होते जे उज्जैन (मध्य प्रदेश, भारत) मध्ये राहत होते.

वराहमिहिराचे सर्वात उल्लेखनीय कार्य म्हणजे बृहत संहिता, स्थापत्यशास्त्र, मंदिरे, ग्रहांच्या हालचाली, ग्रहण, टाइमकीपिंग, ज्योतिष, ऋतू, ढग निर्मिती, पर्जन्यमान, शेती, गणित, रत्नशास्त्र, सुगंधी द्रव्ये आणि इतर अनेक विषयांवरील ज्ञानकोशीय कार्य.

वराहमिहिराच्या मते, काही श्लोकांमध्ये ते खगोलशास्त्र, शिल्पशास्त्र आणि मंदिर स्थापत्यशास्त्र यावरील पूर्वीच्या साहित्याचा फक्त सारांश देत होते, तरीही त्यांचे विविध सिद्धांत आणि डिझाइन मॉडेल्सचे सादरीकरण प्राचीनतम ग्रंथांपैकी एक आहे.

बृहत संहितेचे अध्याय आणि वराहमिहिराचे श्लोक पर्शियन प्रवासी आणि विद्वान अल बिरुनी यांनी उद्धृत केले आहेत.

वराहमिहिराला खगोलशास्त्र आणि ज्योतिषशास्त्रावर अनेक अधिकृत ग्रंथ लिहिण्याचे श्रेय देखील दिले जाते.

तो ग्रीक भाषा शिकला, आणि त्याने त्याच्या मजकुरात ग्रीक लोकांची (यवनांची) स्तुती केली कारण ते विधी क्रमाने अशुद्ध असले तरी "विज्ञानामध्ये चांगले प्रशिक्षित" आहेत.

काही विद्वान त्याला एक मजबूत उमेदवार मानतात ज्याने राशिचक्र चिन्हे, शुभ समारंभांसाठी भविष्यसूचक गणना आणि ज्योतिषीय गणना समजून घेतली आणि ओळखली.

#SPJ3

Similar questions