वर्णिक शब्द का प्रयोग हुआ
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Explanation:
छन्द शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। "छन्दस्" वेद का पर्यायवाची नाम है। सामान्यतः वर्णों और मात्राओं की गेय-व्यवस्था को छन्द कहा जाता है। इसी अर्थ में पद्य शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। पद्य अधिक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। भाषा में शब्द और शब्दों में वर्ण तथा स्वर रहते हैं। इन्हीं को एक निश्चित विधान से सुव्यवस्थित करने पर 'छन्द' का नाम दिया जाता है।
छन्दशास्त्र इसलिये अत्यन्त पुष्ट शास्त्र माना जाता है क्योंकि वह गणित पर आधारित है। वस्तुतः देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि छन्दशास्त्र की रचना इसलिये की गई जिससे अग्रिम सन्तति इसके नियमों के आधार पर छन्दरचना कर सके। छन्दशास्त्र के ग्रन्थों को देखने से यह भी ज्ञात होता है कि जहाँ एक ओर प्रस्तार आदि के द्वारा आचार्य छन्दो को विकसित करते रहे वहीं दूसरी ओर कविगण अपनी ओर से छन्दों में किंचित् परिर्वन करते हुए नवीन छन्दों की सृष्टि करते रहे जिनका छन्दशास्त्र के ग्रन्थों में कालान्तर में समावेश हो गया।
प्राचीन संस्कृत वाङ्मय में छन्दःशास्त्र के लिए अनेक नामों का व्यवहार उपलब्ध होता हैः[1]
(१) छन्दोविचिति, (२) छन्दोमान, (३) छन्दोभाषा, (४) छन्दोविजिनी (५) छन्दोविजिति, (छन्दोविजित), (६) छन्दोनाम, (७) छन्दोव्याख्यान, (८) छन्दसांविच्य, (९.) छन्दसांलक्षण, (१०) छन्दःशास्त्र, (११) छन्दोऽनुशासन, (१२) छन्दोविवृति, (१३) वृत्त, (१४) पिङ्गल
Answer:
यदि अशुभ गणों से प्रारंभ होनेवाले छंद का ही प्रयोग करना है, देवतावाची या मंगलवाची वर्ण अथवा शब्द का प्रयोग प्रथम करना चाहिए - इससे गणदोष दूर हो जाता है। इन गणों में परस्पर मित्र, शत्रु और उदासीन भाव माना गया है। छंद के आदि में दो गणों का मेल माना गया है। वर्णों के लघु एवं दीर्घ मानने का भी नियम है।
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