वर्ण व्यवस्था पर मनु के विचारों का विश्लेषण कीजिए ?
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Explanation:
हिन्दू सामाजिक संगठन में वर्णाश्रम व्यवस्था का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहा है । इसके अन्तर्गत दो प्रकार के संगठन थे- वर्ण तथा आश्रम । इनका सम्बन्ध मनुष्य की प्रकृति तथा उसके प्रशिक्षण से था और इस प्रकार ये हिन्दू सामाजिक संगठन के आधार स्तम्भ हैं । अग्रलिखित पंक्तियों में हम इनकी उत्पत्ति तथा विकास का विवरण प्रस्तुत करेंगे ।
प्राचीन हिन्दू शास्त्रकारों ने वर्ण व्यवस्था का विधान समाज की विभिन्न श्रेणियों के लोगों में कार्यों का उचित बँटवारा करके सामाजिक संगठन बनाये रखने के लिये किया ताकि प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन करते हुए आपसी मतभेदों एवं वैमनस्य से मुक्त होकर अपना तथा समाज का पूर्ण विकास कर सके ।
यह सामूहिक पद्धति से व्यक्ति के उन्नति की योजना है जो भारतीय समाज की अपनी व्यवस्था है । इसके द्वारा व्यक्ति परिवार, समुदाय, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करता था । इसके द्वारा समाज में एक स्वस्थ वातावरण उत्पन्न होता था तथा वर्ग-संघर्ष एवं उच्छूङ्खल प्रतिस्पर्धा की संभावना समाप्त हो जाती थी ।