वर्षा किसे कहते हैं वर्षा कितने प्रकार का होता है किसी एक का वर्णन कीजिए
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Answer:
Varsha Barish ko Karte Hain Barish hone par Hamare Charo Taraf Phool hi Phool Khil Jaate Hain Kyunki Barish Ek ek prakritik chij hai
Explanation:
बारिश के बारे में बारिश के कारण बारिश एक भगवान का दिया हुआ स्वरूप है भगवान हमारे शरीर में उपलब्ध है बारिश देश और दुनिया में किसानों के लिए बढ़िया है क्योंकि इंद्रदेव ने किसानों के लिए बारिश बनाई देवेंद्र करते हैं
Answer:
वर्षा (Rain) Varsha In Hindi
वर्षा के प्रकार
(1) सवहनीय वर्षा
(2) पर्वतीय वर्षा
(3) चक्रवाती वर्षा
वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factros Affecting Reianfall)
विश्व में वर्षा का वितरण
कृत्रिम वर्षा (Artificial Precipipation)
वर्षा : महत्वपूर्ण तथ्य
वर्षा (Rain) varsha in hindi
पृथ्वी पर उपलब्ध जल के वाष्पीकरण होने से वाष्प वायुमंडल में पहुँचता है तथा ऊँचाई पर तापमान कम होने से उसका संघनन होता है। फलस्वरूप मेघ बनते हैं तथा वर्षा बूंदों का निर्माण होता है। जब जलवाष्प की बूंदें जल के
रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं उसे वर्षा (Rainfall) कहते हैं।
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जब जलवाष्प युक्त वायु ऊपर की तरफ उठती है तो तापमान में कमी होने के कारण उसका संघनन होने लगता है। इस तरह बादलों का निर्माण होता है। कुछ समय बाद जलवाष्प की मात्रा अधिक होने के कारण वायुमंडल उसे संभाल नहीं पाता है और जलवाष्प वर्षा की बूंदों में परिवर्तित हो जाता है। तथा वर्षा होने लगती है।
वर्षा के प्रकार
वर्षा तीन प्रकार की होती है :
सवहनीय वर्षा
पर्वतीय वर्षा
चक्रवाती वर्षा
(1) सवहनीय वर्षा
इसकी उत्पत्ति गर्म एवं आर्द्र पवनों के ऊपर उठने से होती है। विषुवतीय प्रदेशों अथवा शान्त पेटी में यही वर्षा होती है। उच्च तापमान तथा आर्द्रता के कारण इन क्षेत्रों में दोपहर 2 से 3 बजे के बीच घनघोर बादल छा जाते है। कुछ क्षणों की मूसलाधार वर्षा के बाद सायं 4 बजे तक वर्षा रूक जाती है। आसमान साफ हो जाता है।
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(2) पर्वतीय वर्षा
जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना होता है तो यह वायु ठण्डी होने लगती है। ठण्डी होने से यह संतृप्त हो जाती है और संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। संघनन के पश्चात होने वाली इस प्रकार की वर्षा को 'पर्वतीय वर्षा' कहते है। यह वर्षा उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ पर्वत श्रेणी समुद्र तट के निकट तथा उसके समानान्तर हो। संसार की अधिकांश वर्षा इसी रूप में होती है। जिस पर्वतीय ढाल पर वर्षा होती है, उसे वर्षा पोषित या पवनाभिमुख क्षेत्र कहते हैं, जबकि विमुख ढाल पर वर्षा नहीं होती है तथा इसे वृष्टि छाया प्रदेश कहते हैं।
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(3) चक्रवाती वर्षा
चक्रवातों के कारण होने वाली वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहते है। इस प्रकार की वर्षा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातीय क्षेत्रों में होती है। या चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवातीय या वाताग्री वर्षा कहते हैं। दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब आपस में टकराती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता है। इस वाताग्र के सहारे गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है और वर्षा होती है। यह वर्षा मुख्य रूप से मध्य एवं उच्च अक्षांशों में होती है।
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कृत्रिम वर्षा (Artificial Precipipation)
कृत्रिम वर्षा को मेघों का कृत्रिम बीजारोपण भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य वस्तुतः उस प्रक्रिया से है जिसमें एक विशेष प्रकार के मेघों को संतृप्त करके वर्षा कराई जाती है।