Hindi, asked by nitinchoudhary94, 1 year ago

वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए पत्र​

Answers

Answered by vishakharaul1
5

Answer:

ग्रीष्म के प्रचंड सूर्य-ताप से झुलसी हुई धरती, मुरझाती हुई हरियाली और अकुलाए जीव-जंतु सब के सब बड़ी बेचैनी से वर्षा-ऋतु के आगमन का इंतजार करते हैं। हिंद महासार से मानसूनी हवाएँ उठ-उठकर संपूर्ण आर्यावर्त में जीवनदायिनी रिमझिम से जन-मन को उल्लसित करने लगती है। मोर खुश हो-होकर थिरकता हुआ नाचने लगता और प्यासी धरती तृप्त हो उठती है। चारों ओर हरियाली का साम्राज्य छा जाता है। फसलों में जान आ जाती है। अधिक उपज की आशाएँ सुखद भविष्य की ओर इशारा करने लगती है।

धूल-भरी आँधियों और लू के झकोरों से निजात मिल जाती है। ललनाएँ झूला झूलना तथा सावन के गीत गाना शुरू कर देती है। ससुराल में दुलहनों को मायका और भया की याद शिद्दत से आऩे लगती है।

ताल-तलैया पोखर गड्ढों तक में पानी भर जाता है और उनमें मेंढ़क टरटराने लगते हैं। जुगनुओं और झिंगुरों की बन जाती है।प्रकृति की जीवनदायिनी छटा चारो तरफ बिखरी हुई दिखाई पड़ती है। जन-जन के मन में सुख और आनंद हिलोरें लेने लगता है इसीलिए वर्षा ऋतु को जीवनदायिनी कहते हैं। जुलाई और अगस्त घनघोर बारिश का समय है। विक्रमी संवत के अनुसार सावन-भादों में बरसात का जोर अधिक रहता है। और हर ओर हरियाली तथा खुशहाली का साम्राज्य छा जाता है।

कभी-कभी ऋतु जब कुझ विलंब से आती है या कम मात्रा मे वर्षा होती है तो व्याकुलता तो बढ़ती ही है। कृषि और पषुपालन में भी सिंचाई और चारा-पानी की समस्या विकराल हो उठती है। सुखे के कारण चारागाह चारारहित हो जाते हैं और जलाशय सूख जाते हैं। कई इलाकों में तो पीने का पानी भी दुर्लभ हो जाता है।

इसी प्रकार अतिवृष्टि से भी जान-माल का बहुत नुकसान होता है। नदियाँ तोड़ देती हैं। गाँव के गाँव जलमग्न हो उठते हैं। संपूर्ण जंतु-जगत विवश-विमूढ़ हो उठता है। फसलें डूब जाती हैं और यातायात के साधन ठप्प हो जाते हैं। जीवनदायिनी वर्षा ऋतु विपदाकारिणी बन जाती है।

ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें अतिवृष्टि और अनावृष्टि की त्रासदी से बचाए और हम हरे-भरे खुशहाल विकसित भारत का निर्माण कर सकें।

Similar questions