वर्षा ऋतु पर एक सुंदर कविता
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फिर से आ गई बरसात है
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झर झर गिरने लगा नीर
गर्मी की सब मिट गई पीर
नदिया के भी भर गए तीर
भिंगा तरु का पात पात है
फिर से आते ही बरसात है
बागों में कोयल बोल रही
शब्दों में मिश्री घोल रही
लो छटा प्राकृतिक की डोल रही
आज सुहाना मधु प्राप्त है
फिर से आ गई बरसात है
दादुर मोर पपीता गाते
सुनकर सब मग्न हो जाते
हरे भरे खेत लहराते
इंद्रधनुष के रंग सात है
फिर से आ गई बरसात है
कितना सुंदर बना बगीचा
बिछा हुआ है हरा गलीचा
प्राकृतिक में हाथों से सीचा
शोभा का बहता प्राप्त है
फिर से आ गई बरसात है
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