वरिष्ठ नागरिक किसे कहा जाता है
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साधारणतया 60 वर्ष की आयु होने पर व्यक्ित वरिष्ठ नागरिक कहलाता है। कुछ सरकारी विभाग उसको कुछ रियायतें भी देते हैं। एक सरकारी कर्मचारी 60 वर्ष होने पर रिटायर होता है और उसकी आय आधी से भी कम हो जाती है पर वित्त मंत्रालय उस पर पहले की दरों से आयकर वसूल करता रहता है जब तक कि वह 65 वर्ष का न हो जाए। यह भेदभाव क्यों? वरिष्ठ नागरिक की एक परिभाषा तय की जानी चाहिए जो सभी संस्थाएं व विभाग समान रूप से लागू करें।ड्ढr प्रीतम सिंह, सेक्टर-37, फरीदाबाद, हरियाणा बच्चों को तो छोड़ दो ‘हिन्दुस्तान’ में 5 फरवरी को प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला कि दिल्ली में किस तरह नवजात शिशुआें के अपहरण का करोबार होता है। ऐसा बच्चा जो अभी अपनी मां को पहचान नहीं पाया है, उसे किस तरह पैसे के लालच में बेच दिया जाता है। हैरानी की बात है कि इन घटनाआें में डॉक्टर और नर्स के अलावा नौकरानी भी शामिल रहती है। ये सब पैसे के लोभ में इतने अंधे हो गए हैं कि बच्चे को भी व्यापार की चीज समझते हैं। इन नन्हे-मुन्नो की हंसी भी उनको ऐसा करने से रोक नहीं पाती है। हम बड़े लोग तो किसी तरह अपनी सुरक्षा कर सकते हैं मगर ये बच्चे कहां जाएं?ड्ढr अभिषेक प्रकाश, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली चीन की यह हिम्मत कमाल है, भारत के प्रधानमंत्री भारत में (अरुणाचल प्रदेश) ही यात्रा पर जाते हैं तो चीन बौखला जाता है। वह चीखता है कि भारतीय पी.एम. अरुणाचल क्यों गए? और फिर हमारे विदेशीमंत्री प्रणव जी चीन को बताते हैं कि अरुणाचल हमारा है और मनमोहन जी हमारे पी.एम. हैं और वे देश में कहीं भी आ-जा सकते हैं। हद हो गई, अब हमें यह बताने की जरूरत पड़ रही है कि अरुणाचल हमारा है तथा हमारे पी.एम. वहां जा सकते हैं। क्या भारतीय प्रधानमंत्री को कहीं जाने से पहले चीनी सरकारसे अनुमति लेनी पड़ेगी?ड्ढr इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली सुन सुन री अरी दिल्ली ना बिजली है ना पानीड्ढr महंगी है आसमानीड्ढr हलकान दादी-नानीड्ढr तू बाघिन बनी सयानीड्ढr जनता बनी है बिल्लीड्ढr सुन सुन री अरी दिल्लीड्ढr प्राण मोहन ‘प्राण’, बौंसी, बांका, बिहार कोई समझाए शासन प्रशासन तथा न्यायविद क्यों सोए पड़े हैं? स्वतंत्रता के अधिकार अनुच्छेद 1े तहत प्राप्त छह में से एक स्वतंत्रता, ‘देश के किसी भाग में बसने और व्यवसाय या व्यापार करने की स्वतंत्रता’ की धज्जियां उड़ा रहा है। और अब तो राज ठाकरे के सुर में सुर उद्धव ठाकरे भी मिला रहे हैं। इन लोगों को पहले संविधान में निहित मौलिक अधिकार अनुच्छेद 14 से 32 तक पढ़ लेने चाहिए। फिर इस तरह का बयान देना चाहिए। हमारे देश के संविधान के अनुसार हम देश के नागरिक हैं, प्रदेश के नहीं।ड्ढr कृष्ण कुमार वर्मा. प्रताप विहार, गाजियाबाद, उ.प्र. हम तो डूबेंगे सनम तुमको.. कहावत है कि ‘शादी एक मीठा लड्डू है, जो खाए पछताए, और जो न खाए पछताए।’ इसीलिए लड़कों की शादी की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल किए जाने के पीछे बदले की भावना झलकती है। समाज के भुक्तभोगी सोचते हैं कि ‘बच्चू’ जब शादी करके हम आजाद नहीं तो तुम्हें आजाद क्यों घूमने दें? और फिर युवा भी जीवन चक्र के मोह में आ जाते हैं कि ‘चलो यार पछताना ही है तो लड्डू खा कर ही क्यों न पछताएं?’ दिल्ली जैसे शहर में तो बालकों को अपने पैरों पर खड़े होते-होते ही 25वां साल लग जाता है, भला वह 18 साल की कमसिन उम्र में ब्याह क्यों रचाने लगा?ड्ढr राजेन्द्र कुमार सिंह, सेक्टर-15, रोहिणी, दिल्ली
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