वर्षअ ऋतु पर पंक्तियां
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1. Rainy Poem in Hindi – झम झम झम झम
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आँधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।
पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल,
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल।
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूँदें झलमल।
नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल,
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल
हँसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?
दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्याँउ म्याँउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण!
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।
वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन।
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन।
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।
रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।
पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!
सुमित्रानंदन पंत
2. Varsha Poem in Hindi – फिर नभ घन घहराये
फिर नभ घन घहराये ।
छाये, बादल छाये ।
कौंधी चपला अलक-बंध की
परी प्रिया के मुख की छवि-सी,
बून्दें सुख के आंसू ढल कर,
पृथ्वी के उर आये ।
दिवस निशा का सुखद स्वप्न है,
ज्योतिश्छाया देश लग्न है,
आतप के कुम्हलाये खुलकर
मुख-प्रसून भाये ।
उगी दूब की अति हरियाली,
गली-गली सुख-सेज बिछा ली,
प्रकृति-सुन्दरी ने शोभा के
रंग, कर दिखलाये ।
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
3. वर्षा ऋतु पर कविता – हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें
हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें।
सब्जों की लहलहाहट ,बाग़ात की बहारें।
बूँदों की झमझमाहट, क़तरात की बहारें।
हर बात के तमाशे, हर घात की बहारे।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
बादल लगा टकोरें , नौबत की गत लगावें।
झींगर झंगार अपनी , सुरनाइयाँ बजावें।
कर शोर मोर बगले , झड़ियों का मुँह बुलावें।
पी -पी करें पपीहे , मेंढक मल्हारें गावें।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
क्या – क्या रखे हए है या रब सामान तेरी कुदरत।
बदले है रंग क्या- क्या हर आन तेरी कुदरत।
सब मस्त हो रहे हैं , पहचान तेरी कुदरत।
तीतर पुकारते है , ‘सुबहान तेरी कुदरत’।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
जो मस्त हों उधर के , कर शोर नाचते हैं।
प्यारे का नाम लेकर ,क्या जोर नाचते हैं।
बादल हवा से गिर – गिर, घनघोर नाचते हैं।
मेंढक उछल रहे हैं ,और मोर नाचते हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
कितनों तो कीचड़ों की, दलदल में फँस रहे हैं।
कपड़े तमाम गंदे , दलदल में बस रहे हैं।
इतने उठे हैं मर – मर, कितने उकस रहे हैं।
वह दुख में फँस रहे हैं, और लोग हँस रहे हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
यह रुत वह है जिसमें , खुर्दो कबीर खुश हैं।
अदना गरीब मुफ्लिस, शाहो वजीर खुश हैं।
माशूक शादो खुर्रम , आशिक असीर खुश हैं।
जितने हैं अब जहाँ में, सब ऐ ‘नज़ीर’ खुश हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
नज़ीर अकबराबादी
4. Varsha Ritu Poem – आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी
आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।
अपने साथ काले काले मेघा लायी ।।
जोर जोर से गरज उठे काले मेघा ।
फिर कही बारिश की बौछारे आयी ।।
जोर जोर से उमड़ घुमड़ कर बरसे बदरा ।
सूखे खेतो में फसले लहराई ।।
धरती पुत्र किसानो की आँखे चमक उठी ।
घर घर में खुशियाँ आयी ।।
हाहाकार मचा रही गर्मी को धुल चटाई ।
आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।।
नवजीवन की नई जोत जलाई ।
पर्वत भी झूम उठा झरने भी झूम उठे ।।
खुले मैदानो फिर नदियाँ कल-कल कर बहने लगी ।
धरती माँ ने भी हरियाली की चुनरी ओढ ली ।।
आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।।
नरेंद्र वर्मा
5. Poem on Varsha Ritu in Hindi – सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी
सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी
पछुआ चूस गई पुरवा को, धरती रह गई प्यासी
फसलों ने वैराग ले लिया, जोगी हो गई धानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
ताल तलैया माटी चाटै, नदियाँ रेत चबाएँ
कुएँ में मकड़ी जाला ताने, नहरें चील उड़ाएँ
उबटन से गगरी रूठी है, पनघट से बहुरानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
छप्पर पर दुपहरिया बैठी, धूप टँगी अँगनाई
द्वार का बरगद ठूँठ हो गया, उजड़ गई अमराई
चौपालों से खलिहानों, तक सूरज की मनमानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
पिघल गया चेहरों का सोना, उतर गई महताबी
गोरी बाँहें हुईं साँवरी, बुझ गए नयन गुलाबी
सपने झुलस गए राधा के, श्याम हुए सैलानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
बाज़ारों में मँहगाई की बिखर गई तस्वीरें
हमदर्दों के पाँव पड़ गई वादों की जंजीरें
सँसद की कुरसी में धँस गई खेती और किसानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
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please branlist answer