Hindi, asked by bablu9703114813, 3 months ago

िवराट से दुयŖधन हारने के बाद कहाँ लौट गया ? ​

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Answered by Anonymous
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hastinapur........................

Answered by akanshakhatana1
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कौरवों ने विराट नगर पर हमला बोल दिया। प्रजा राजसभा में आकर रक्षा के लिये गुहार लगाने लगी, किन्तु उस समय तो महाराज चारों पाण्डवों के साथ सुशर्मा से युद्ध करने चले गये थे। महल में केवल राजकुमार उत्तर ही थे। प्रजा को रक्षा के लिये गुहार लगाते देखकर सैरन्ध्री (द्रौपदी) से रहा न गया और उन्होंने राजकुमार उत्तर को कौरवों से युद्ध करने के लिये न जाते हुए देखकर खूब फटकारा। सैरन्ध्री की फटकार सुनकर राजकुमार उत्तर ने शेखी बघारते हुये कहा- "मैं युद्ध में जाकर कौरवों को अवश्य हरा देता, किन्तु असमर्थ हूँ, क्योंकि मेरे पास कोई सारथी नहीं है।” उसकी बात सुनकर सैरन्ध्री ने कहा- "राजकुमार! बृहन्नला बहुत निपुण सारथी है और वह कुन्तीपुत्र अर्जुन का सारथी रह चुकी है। तुम उसे अपना सारथी बनाकर युद्ध के लिये जाओ।” अन्ततः राजकुमार उत्तर बृहन्नला को सारथी बनाकर युद्ध के लिये निकला। उस दिन पाण्डवों के अज्ञातवास का समय समाप्त हो चुका था तथा उनके प्रकट होने का समय आ चुका था। उर्वशी के शापवश मिली अर्जुन की नपुंसकता भी समाप्त हो चुकी थी। अतः मार्ग में अर्जुन ने उस श्मशान के पास, जहाँ पाण्डवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाये थे, रथ रोका और चुपके से अपने हथियार ले लिये। जब उनका रथ युद्धभूमि में पहुँचा तो कौरवों की विशाल सेना और भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, दुर्योधन आदि पराक्रमी योद्धाओं को देखकर राजकुमार उत्तर अत्यन्त घबरा गया और बोला- "बृहन्नला! तुम रथ वापस ले चलो। मैं इन योद्धाओं से मुकाबला नहीं कर सकता।” बृहन्नला ने कहा- "हे राजकुमार! किसी भी क्षत्रियपुत्र के लिये युद्ध में पीठ दिखाने से तो अच्छा है कि वह युद्ध में वीरगति प्राप्त कर ले। उठाओ अपने अस्त्र-शस्त्र और करो युद्ध।” किन्तु राजकुमार उत्तर पर बृहन्नला के वचनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह रथ से कूदकर भागने लगा। इस पर अर्जुन (वृहन्नला) ने लपक कर उसे पकड़ लिया और कहा- "राजकुमार! भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। मेरे होते हुये तुम्हारा कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आज मैं तुम्हारे समक्ष स्वयं को प्रकट कर रहा हूँ। मैं पाण्डुपुत्र अर्जुन हूँ और 'कंक' युधिष्ठिर, 'बल्लव' भीमसेन, 'तन्तिपाल' नकुल तथा 'ग्रन्थिक' सहदेव है। अब मैं इन कौरवों से युद्ध करूँगा, तुम रथ की बागडोर संभालो।” यह वचन सुनकर राजकुमार उत्तर ने गदगद होकर अर्जुन के पैर पकड़ लिये।

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