वर्तमान काल मे दान का महत्व अपने शब्दो में लिखिए
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दान का महत्व
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दान देने वाले की सभी प्रशंसा करते हैं। राजा शिवि, मुनि दधीच, कर्ण आज भी दान के कारण अमर हैं। आपके पास जो भी है यथा-धन, वस्तु, अन्न, बल, बुद्धि, विद्या उसे किसी अन्य जीव को उसकी आवश्यकता पर, चाहे वह मांगे या न मांगे, उसे देना परम धर्म, मानवता या कर्तव्य है। प्रकृति अपना सब कुछ जीवों को बिना मांगे ही दे रही है। ईश्वर भी, भले हम मांगें या न मांगें हमारी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार हमें देता है। अत: वह हमसे भी अपेक्षा करता है कि हम भी, हमारे पास जो है उसे दूसरों को दें। शास्त्रों में कई ऐसे प्रसंग हैं कि जो दीनों की सहायता नहीं करता वह कितना भी यज्ञ, जप, तप, योग आदि करे उसे स्वर्ग या सुख नहीं प्राप्त होता। जिस व्यक्ति में या समाज में दान की भावना नहीं होती उसे सभ्य नहीं कहा जाता। उसकी निंदा होती है और उसका पतन होता है, क्योंकि समाज में सुखी-दुखी, और संपन्न-विपन्न होंगे ही और सहयोग की आवश्यकता होगी। अत: समाज के अस्तित्व और प्रगति के लिए सहयोग आवश्यक है। दान देने के समय आपके मन में, अहं का, पुण्य कमाने का या अहसान करने का नहीं होना चाहिए, उस पात्र का आपको कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने आपके अंदर सद्भाव जगाकर आपको कृतार्थ किया। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए कि उसने आपको कुछ देने के योग्य बनाया।
गीता के अनुसार दान तीन प्रकार का होता है। जो दान कुपात्र व्यसनी को या अनादरपूर्वक या दिखावे के लिए दिया जाए वह अधम, जो बदले में कोई लाभ लेने या यश की आशा से कष्ट से भी दिया जाए वह दान मध्यम है। परंतु जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी अहं भाव के, नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है वही उत्तम श्रेणी में आता है। कर्मो के अनुसार पुनर्जन्म होता है और उसी के अनुसार धनी और निर्धन समाज में दिखाई पड़ते हैं। दान ईश्वर की प्रसन्नता में प्रमुख है। अत: ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, अपने को उत्कृष्ट बनाने के लिए और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें जरूरतमंदों की सहायता करनी ही होगी।
कर्मो के अनुसार पुनर्जन्म होता है और उसी के अनुसार धनी और निर्धन समाज में दिखाई पड़ते हैं। दान ईश्वर की प्रसन्नता में प्रमुख है। अत: ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, अपने को उत्कृष्ट बनाने के लिए और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें जरूरतमंदों की सहायता करनी ही होगी।
दान का महत्व:दानशील मनुष्य वही होता है जो करुणावान हो, त्यागी हो और सत्कर्मी हो। एक अच्छे मानव में ही दानशीलता का गुण होता है। जिसके हृदय में दया नहीं वह दानी कभी नहीं हो सकता और वह दान ऐसा हो जिसमें बदले में उपकार पाने की कोई भावना न हो।हमें इसी संसार में और इसी जन्म में जितना संभव हो सके, दान करना चाहिए। यदि हम ईश्वर की अनुभूति के अभिलाषी हैं तो हमें उसकी संतान की सहायता हरसंभव करनी चाहिए।ईश्वर का अंश हर मानव में मौजूद है। हमारा कर्तव्य है कि हम उसके बनाए जीव की यथासंभव सहायता करें। यदि हम प्रकृति से कुछ सीख लें तो वृक्ष भी परोपकार के लिए फल देते हैं।यदि हम धन से वस्त्र का दान देंगे, तो वह बहुत बड़ा दान नहीं, किंतु यदि हम किसी दूसरे व्यक्ति को विद्या का दान देते हैं तो इससे उसका सारा जीवन सुखमय हो जाएगा।हम जो धन कमाते उस कमाई का 10 फीसदी हिस्सा दान में जरूर दें । ऐसा करने से आपकी कमाई में दिन दूनी रात चज्ञैगुनी वृद्धि होती है । ये बात कहने के लिए नहीं कही जा रही है, ऐसा हमारे शास्त्र कहते हैं । आपकी कमाई का एक हिस्सा दूसरों के लिए रखें ये आपको लाभ, पुण्य देगा ।
निष्कर्ष:धनी और निर्धन समाज में दिखाई पड़ते हैं। दान ईश्वर की प्रसन्नता में प्रमुख है। दान करना बहुत पुण्यदायी कार्य माना गया है। दान-पुण्य करने से ना सिर्फ ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि घर में सुख-शांति और बरकत भी आती है।