Hindi, asked by dheerajsinghbisht77, 7 months ago

वर्तमान कोरोना महामारी के दौर मै आयी ज़बरदरत मंदी ने किस प्रकार बेरोजगारी को बढ़या है उदाहरण देकर समझाये ।​

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Answered by ashish200872
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Answer:

कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती की खबरें आ रही हैं.

माल्स, रेस्तरां, बार, होटल सब बंद हैं, विमान सेवाओं और अन्य आवाजही के साधनों पर रोक लगी हुई है. फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.

ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.

इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.

बॉस्टन कॉलेज में काउंसिलिंग मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और 'द इंपोर्टेन्स ऑफ वर्क इन अन एज ऑफ अनसर्टेनिटी : द इरोडिंग वर्क एक्सपिरियन्स इन अमेरिका' क़िताब के लेखक डेविड ब्लूस्टेन कहते हैं, "बेरोज़गारी की वैश्विक महामारी आने वाली है. मैं इसे संकट के भीतर का संकट कहता हूँ."

जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.

सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें?

Image copyrightREUTERSकोरोना वायरस, नौकरियां जाने का ख़तरा

Image captionलॉकडाउन के कारण दफ्तरों और कारखानों में काम बंद हो गया है.

हालात कठिन हैं

39 वर्ष के जेम्स बेल जिस बार में काम करते थे, उसके बंद होते ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. अपने पाँच लोगों के परिवार को चलाने के लिए वेतन और टिप पर पूरी तरह निर्भर जेम्स के लिए यह एक बड़ा झटका था.

वो कहते हैं, "मुझे अंदाजा था कि कोरोना की ख़बरों के बाद बार में बहुत कम लोग आ रहे हैं, लेकिन यह अंदेशा नहीं था कि मेरी नौकरी ही चली जाएगी."

अब वह बेरोज़गारी भत्ते और विभिन्न चैरिटेबल संस्थाओं से वित्तीय सहायता पाने के लिए कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन अचानक आजीविका चली जाने के दुख पर एक सुकून यह भी है कि अब उन्हें हर दिन वायरस से संक्रमित होने के डर से मुक्ति मिल गयी है.

वो कहते हैं, "नौकरी जाने से एक हफ्ते पहले तक मैं बार के दरवाज़ों के हैंडल को बार-बार डिसिनफ़ेक्ट कर रहा था."

उनके मुताबिक़ उनकी भावनात्मक स्थिति बहुत डांवाडोल है. नौकरी जाने का तनाव और महामारी का डर दोनों उन्हें परेशान करता रहता है.

जेम्स कहते हैं कि उन्हें इस बातका आभास है कि यह स्थिति हर व्यक्ति के साथ है. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि मेरी असली चिंता यह है कि ये सब कब तक चलेगा. ये हालात जितने अधिक समय तक रहेंगे, हमारा वित्तीय संकट बढ़ता ही जाएगा."

Explanation:

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Answered by purujitpranshu
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Answer:

भारत को भी बिना समय गंवाए ऐसा करना चाहिए. यह भारत के लिए कहीं ज्यादा गंभीर समस्या है, क्योंकि इसका करीब 50 फीसदी श्रमबल स्वरोजगार में लगा है और 95 फीसदी कामगार असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं.

रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित ‘जनता कर्फ्यू’ की सफलता का प्रदर्शन करते हुए जो लोग टीवी पर थाली और बर्तन पीटते हुए देखे गए, उनमें आबादी का यह हिस्सा कहीं नजर नहीं आया.

विभिन्न शहरों की संपन्न कॉलोनियों की बालकॉनी पर नजर आने वाले लोगों की वर्गीय बनावट ने यह साफ तौर पर दिखाया कि वे इस बात को लेकर चिंतित नहीं थे कि अगले कुछ महीनों में उनका खाना-पीना कैसे चलेगा या वे अपने बच्चों की स्कूल फीस कैसे चुकाएंगे.

दरअसल सबसे पहली और तत्काल तबाही अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों की आनेवाली है और इस तबके पास कुछ महीनों तक गुजारा कर लेने लायक बचत भी शायद ही हो.

कुछ महीनों तक के लिए आर्थिक गतिविधियों को बंद करने का गरीबों पर पड़ने वाला असर नरेंद्र मोदी सरकार के लिए कोई नया अनुभव नहीं है.

नोटबंदी ने अनौपचारिक क्षेत्र की कमर तोड़ कर रख दी. इसका नकारात्मक असर बाद तक बना रहा और इसके बाद के सालों में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 45 सालों में सबसे ज्यादा हो गयी और 40 सालों में पहली बार निजी उपभोग में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई.

भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही मैन्युफैक्चरिंग मंदी के दौर में थी. 2019 की आखिरी दो तिमाहियों में तेल, गैस, बिजली आदि जैसे कोर क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई.

एक तरह से देखा जाए तो कोविड-19 ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर उस समय हमला किया है, जब यह पहले से ही लड़खड़ाई हुई थी. जब एक तरफ निवेश का नामोनिशान गायब था, बेरोजगारी दर काफी ऊंची थी और ग्रामीण मजदूरी और उपभोग में लगभग ठहराव आ गया था.

इसलिए जब सरकार कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए आर्थिक गतिविधियों पर ताला लगाएगी, तब उसे यह मालूम होगा कि इससे और बेरोजगारी पैदा होगी और लोगों की कमाई में और गिरावट आएगी.

इसलिए सरकार को सबसे पहला काम देश के दिहाड़ी मजदूरों और स्वरोजगार में लगे लोगों के लिए इनकम ट्रांसफर का करना चाहिए.

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