वर्तमान में इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के चलते लोग डॉक्टर से इलाज की जगह इंटरनेट पर ही रोग के लक्षण और उपचार देखकर काम चलाने लगे हैं । यह कितना उचित है और कितना अनुचित है इसकी विवेचना करते हुए अपना मत दीजिए। Pls I want answer for just this Question only
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दिल्ली के रहने वाले अमित बीमारी का एक भी लक्षण होने पर तुरंत इंटरनेट का रुख कर लेते हैं। इंटरनेट पर दिए गए लक्षणों के हिसाब से अपनी बीमारी का अंदाजा लगाते हैं। हाल ही में अमित को कुछ दिनों से सिर में दर्द और भारीपन था। जब सामान्य दवाई से भी वो ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू कर दिया। इंटरनेट पर उन्हें सिरदर्द के लिए माइग्रेन और ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियां तक मिलीं। इससे परेशान होकर वो राम मनोहर लोहिया अस्पताल दौड़ पड़े और डॉक्टर से जिद्द करके सिटी स्कैन लिखवा लिया। टेस्ट कराने पर नतीजे बिल्कुल सामान्य आए और कुछ दिनों में सिरदर्द भी चला गया लेकिन, इन कुछ दिनों में अमित सिरदर्द से ज्यादा परेशान बीमारी को लेकर रहे।
इस तरह इंटरनेट पर बीमारी, दवाई या टेस्ट रिपोर्ट समझने की कोशिश करने वालों की संख्या कम नहीं है। कई लोग बीमारियों के लक्षण और इलाज खोजने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं। वह बीमारी के बारे में इंटरनेट पर पढ़ते हैं और उस पर अपने निष्कर्ष निकालने लगते हैं। इस रिसर्च के आधार पर ही वो डॉक्टर से भी इलाज करने के लिए कहते हैं। डॉक्टर्स का आए दिन इस तरह के मरीजों से आमना-सामना होता है और उन्हें समझा पाना डॉक्टर के लिए चुनौती बन जाता है।इस बारे में मैक्स अस्पताल में मेडिकल एडवाइजर और डायरेक्टर(इंटरनल मेडिसिन) डॉ। राजीव डैंग कहते हैं, ''हर दूसरा मरीज नेट और गूगल से कुछ न कुछ पढ़कर आता है, उसके मुताबिक सोच बनाता है और फिर बेबुनियाद सवाल करता है। मरीज अपनी इंटरनेट रिसर्च के अनुसार जिद करके टेस्ट भी कराते हैं और छोटी-मोटी दवाइयां ले लेते हैं।'' 'कई लोग सीधे आकर कहते हैं कि हमें कैंसर हो गया है। डॉक्टर खुद कैंसर शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं करते जब तक पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते कि ये कैंसर है क्योंकि इससे मरीज को घबराहट हो सकती है।'
लोगों में दवाइयों का इस्तेमाल जानने को लेकर भी काफी उत्सुकता होती है। वह इस्तेमाल से लेकर दुष्प्रभाव तक इंटरनेट पर खोजने लगते हैं। डॉ। राजीव कहते हैं कि भले ही व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन वो खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ''एक बार मेरे एक मरीज के रिश्तेदार ने फोन करके मुझसे गुस्से में पूछा कि आपने ये दवाई क्यों लिखी। वो रिश्तेदार वर्ल्ड बैंक में काम करते थे। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर तो लिखा है कि ये एंटी डिप्रेशन दवाई है और मरीज को डिप्रेशन ही नहीं है। तब मैंने समझाया कि ये दवाई सिर्फ एंटी डिप्रेशन की नहीं है। इसके और भी काम है लेकिन इंटरनेट पर पढ़कर ये नहीं समझा जा सकता।''