वर्तमान में लोकतंत्र का कौनसा रूविद्यमान है?
कापरख कारण क्या है?
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बीसवीं सदी में राजनीतिक विचारकों ने प्रश्न उठाना शुरू किया कि क्या जनसाधारण प्रतिदिन के जीवन में राजनीति में कोई भूमिका निभा सकते हैं? क्या सामान्य नागारिक, जो अपने जीविकोपार्जन में लगे रहते हैं, राजनीतिक भूमिका निभाने के लिए समय और शक्ति लगा सकते हैं? क्या जनसमूह बिना किसी प्रतिबंध के चुनावी लोकतंत्र के माध्यम से अपनी भावनाओं का खुला प्रदर्शन करता है तो स्वतंत्रता नष्ट हो जाएगी? इन प्रश्नों के उत्तर में ही लोकतंत्र के अभिजनवादी और बहुलवादी सिद्धान्त विकसित हुए हैं।
अभिजन (एलीट) पद का प्रयोग किसी समूह के ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग के लिए होता है जो कुछ कारकों की वजह से समुदाय में विशिष्ट हैसियत रखते हैं। यह अल्पसंख्यक वर्ग समाज में सत्ता के वितरण में अग्रणी भूमिका में होता है। राजनीतिक श्रेष्ठीवर्ग, प्रेस्थस के अनुसार, सामुदायिक मामलों में अपने संख्या-बल के अनुपात में कहीं ज्यादा सत्ता का उपभोग करता है।
प्रजातंत्र के सबंध में अभिजन सिद्धान्त का अभ्युदय द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ इस सिद्धांत के प्रवर्त्तकों में विल्फ्रेडो पैरेटो, ग्रेटानोमोस्का, रॉबर्ट मिशेल्स और अमेरिकी लेखक जेम्स बर्नहाम तथा सी. राइट मिल्स प्रमुख हैं। इस सिद्धांत का मुख्य आधार यह मान्यता है कि समाज में दो तरह के लोग होते हैं- गिने चुने विशिष्ट लेग और विशाल जनसमूह। विशिष्ट लोग हमेशा शिखर तक पहुँचते हैं क्योंकि वे सारी अर्हताओं से सम्पन्न सर्वोत्तम लोग होते हैं। अभिजन वर्ग विशेष रूप से राजनीतिक अभिजन वर्ग, सारे राजनीतिक कृत्यों का निष्पादन करता है, सत्ता पर एकाधिकार कर लेता है और सत्ता से जुड़े सारे लाभ उठाता है।