Hindi, asked by ShikhaS1a1x2e2n3a4, 8 months ago

वर्तमान परिवेश में भारत राष्ट्र की चुनौतियां पर २०० से २५० शब्दों में निबंध likhiye ( प्रस्तावना, सामाजिक , धार्मिक चुनौती, राजनैतिक , आर्थिक चुनौती , उपसंहार ।​

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Answered by PeepingMoon
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Explanation:भारत दुनिया के तेज आर्थिक विकास वाले देशों में है, पर इस विकास का लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा. इसका असर उसके विकास पर भी पड़ा, जो पिछले महीनों में लगातार धीमा हुआ है. सामाजिक चुनौतियां बनी हुई हैं और गरीबी बढ़ रही है.

भारत ने 90 के दशक में आर्थिक सुधार शुरू किया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय देश के वित्त मंत्री थे. सुधारों से उम्मीद थी कि लोगों के आर्थिक हालात सुधरेंगे, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान न देने की वजह से गरीबी, कुपोषण, भ्रष्टाचार और लैंगिक विषमता जैसी सामाजिक समस्याएं बढ़ी हैं. अब यह देश के विकास को प्रभावित कर रहा है. दो दशक के आर्थिक सुधारों की वजह से देश ने तरक्की तो की है, लेकिन एक तिहाई आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है. भारत इस अवधि में ऐसा देश बन गया है जहां दुनिया भर के एक तिहाई गरीब रहते हैं.पिछले सालों में भारत की विकास दर करीब 9 फीसदी रही है, लेकिन देहाती क्षेत्रों और अर्थव्यवस्था के ज्यादातर इलाकों में आय बहुत धीमी गति से बढ़ी है.भ्रष्टाचार देश की एक बड़ी समस्या बनी हुई है. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार 176 देशों की सूची में भारत 94वें नंबर पर है. भ्रष्टाचार विरोधी अंतरराष्ट्रीय संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में रिश्तखोरी का स्तर काफी ऊंचा है. भारत में 70 फीसदी लोगों का मानना है कि पिछले दो साल में भ्रष्टाचार की स्थिति और बिगड़ी है. पिछले साल सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में विशाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ, लेकिन जन लोकपाल बनाने की मांग को राजनीतिक दलों का व्यापक समर्थन नहीं मिला. पार्टियां अपने को आरटीआई कानून से भी अलग रखना चाहती हैं.नए रोजगार बनाने और गरीबी को रोकने में सरकार की विफलता की वजह से देहातों से लोगों का शहरों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है. इसकी वजह से शहरों के ढांचागत संरचना पर दबाव पैदा हो रहा है. आधुनिकता के कारण परंपरागत संयुक्त परिवार टूटे हैं और नौकरी के लिए युवा लोगों ने शहरों का रुख किया है, जिनका नितांत अभाव है. नतीजे में पैदा हुई सामाजिक तनाव और कुंठा की वजह से हिंसक प्रवृति बढ़ रही है, खासकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा में तेजी आई हैभारतीय समाज महिलाओं के मुद्दों को किस तरह नजरअंदाज कर रहा है, यह इस बात से पता चलता है कि सालों से चल रही बहस के बावजूद महिलाओं के लिए संसद में सीटों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच सहमति नहीं बन पाई है. कुछ राजनीतिक दल इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं, जबकि दूसरे अवसरवादी कारणों से इस पर जोर नहीं दे रहे हैं. इतना ही नहीं कोई भी राजनीतिक पार्टी संगठन की संरचना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं कर रही है.

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