वर्तमान परिवेश मे दीपावली के बदलते स्वरूप पर अनुच्छेद लिखिए
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वर्तमान परिवेश में दिवाली के बदलते स्वरूप पर अनुच्छेद
वर्तमान परिवेश के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो दिवाली का स्वरूप एकदम बदलता जा रहा है। अब दीवाली की जीवंतता गायब होती है। दिवाली मनाने में लोगों का वह उत्साह अब नहीं रह गया जैसा पहले रहता था। पहले पूरे 5 दिन तक रोनक रहती थी। अब पाँच दिन तक वैसी रौनक महसूस नहीं होती। बल्कि मुख्य दीवाली के दिन ही लोग दीवाली मनाकर लोग अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं।
पटाखों के उपयोग के कारण बढ़ते प्रदूषण पर संज्ञान लेकर अदालतों द्वारा पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से बाजार से पटाखे बिल्कुल गायब हो गए है। इस कारण भले ही गुपचुप से थोड़े-बहुत पटाखे जलते हों लेकिन अब इतनी बड़ी मात्रा में पटाखे नहीं। ये कदम भले ही पर्यावरण की भलाई और प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये उठाया गया हो, लेकिन इससे दिवाली की रौनक खत्म हो गई है। दिवाली दिवाली का त्यौहार रोशनी का त्यौहार तो था ही और पटाखों जलाना खुशी का प्रतीक होते थे। तब पटाखे लोग सीमित मात्रा में जलाते थे, इतना प्रदूषण भी नहीं होता था।
पहले लोग घी तेल के दीए जलाते थे और पूरा घर इन दियों से सज जाता था। ये दिए पर्यावरण के अनुकूल भी होते थे और वातावरण को स्वच्छ भी करते थे। अब इनकी जगह पहले तो मोमबत्तियों ने ली और अब बिजली की लड़ियों ने ले ली है, धीरे-धीरे मिट्टी के दीए भी गायब होते जा रहे हैं। अब लोग केवल परंपरा के तौर 5-10 दिये ही जलाते हैं। कंदील तो अब मार्केट से गायब ही हो गये है। पहले हर घर के आगे कंदील टंगा होता था, अब तो कंदील देखने से नही मिलते। मिठाइयों की जगह ड्रायफ्रूट्स और चॉकलेट्स ने ले ली है। ग्रीटिंग कार्ट की जगह अब व्हाट्सएप संदेशों और एसएमएस ने ली है।
दीवाली के त्योहार मनाने में अब वैसी जीवंतता नहीं रही। लोगों द्वारा त्योहारों पर किए जा रहे अत्याधिक प्रदूषण और दिखावे के कारण हो रहे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई भले ही कुछ आवश्यक कदम उठाए गये हो और वह सराहनीय भी हैं, लेकिन इन सब प्रतिबंधों से त्योहारों की जीवंतता नष्ट हो गई है और लोग इन प्रतिबंधों के कारण त्योहारों को पूरे उल्लास से मनाने में कतराने लगें हैं। यह निराशा पैदा करने वाली बात है कि हम आपने त्योहारों की उत्सव धर्मिता को भूलते जा रहे हैं और उन्हें एक औपचारिकता के त्यौहार पर ही मना रहें हैं।