वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है।
संतों में शिरोमणि कबीर दास भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल
साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महा नेता और युग-द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की
भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने
विचारों को और भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार को युग-युगान्तर के लिए अमरता प्रदान
की। कबीर ने हर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-
सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण कामना से
प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य-रचना की।
वे पाठशाला या मकतब की देहरी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की
दशा में जीकर सत्य, ईश्वर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ
पढ़ाकर अनुभूति मूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए
मिथ्याचारों
और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर
समाज में फैले
ढोंग और ढकोसलों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में जो बातें
कहीं, उनसे समाज की ऑखें फटी की फटी रह गई और साधारण जनता उनकी वाणियों से
चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को बाध्य हो उठी।
हुए
देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं का
समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न संत कबीर ने किया।
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साधारण जनता उनकी वाणियों से
चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को बाध्य हो उठी।
हुए
देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं का
समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न संत कबीर ने किया।
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