वर्तमान स्थिति को मध्यनज़र रखते हुए समाज को सीख देने वाले 10 रहीम दोहे लिख कर सचित्र विग्यापित कीजिए
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भारत के हिंदी पट्टी इलाकों में रहीम के दोहे आज भी जीवंत देखे जा सकते हैं. रहीम का जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर में अकबर के संरक्षक बैरम खां के घर हुआ था.
इनके दोहे की खासियत यह है कि यह पढ़े-लिखे लोगों से लेकर अनपढ़ लोगों में लोकप्रिय हैं. लोग आज भी रहीम के दोहे का इस्तेमाल अपने जीवन में घट रही चीजों को बताने के लिए करते है. रहीम की भाषा गंगा-जमुनी तहजीब वाली थी. उन्हें अरबी, तुर्की, फारसी, संस्कृत और हिन्दी की अच्छी जानकारी थी. रहीम ने हिन्दी के तद्भव शब्दों का प्रयोग अपने काव्य में किया है.
यही वजह थी कि रहीम से खुश होकर अकबर ने उन्हें शहजादों को प्रदान की जाने वाली उपाधी 'मिर्जा खान' दी थी. रहिम के ग्रंथों में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, श्रृंगार, सोरठा महत्वपूर्ण हैं. रहीम मुस्लिम होते हुए भी भगवान कृष्ण के भक्त थे, उन्होंने भगवान कृष्ण के लिए कई कविताएं लिखीं. रहीम ने अपने काव्य में प्रमुखता से रामायण, महाभारत, पुराण और गीता के नायकों को जगह दी. उन्होंने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा 'तुजके बाबरी' का फारसी में अनुवाद भी किया.