वर्तमान समाज में स्वार्थ लोलुपता किस प्रकार हमारे समाज को विकृत कर रही है ? 'हरिहर काका' पाठ के आधार पर बताइए ?
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- >>>>> 'हरिहर काका' कहानी के द्वारा लेखक मिथिलेश्वर ने परिवारों में और धार्मिक स्थलों में बढ़ रही स्वार्थलोलुपता पर निशाना साधा है। इस कहानी के मुख्यपात्र हरिहर काका हैं। वह एक वृद्ध और निसंतान व्यक्ति हैं। अपना कहने के नाम पर उनके तीन भाई हैं। उनके भाईयों का परिवार भरा-पूरा परिवार है। हरिहर काका इन्हीं के साथ रहने में अपना सुख मानते हैं। मन को सुख देने के लिए ठाकुरबारी (मंदिर) है। हरिहर काका के जीवन में इन दोनों का विशेष महत्व है। परंतु इन्हीं दोनों ने उन्हें अपने स्वार्थ के लिए छला है। उन्हें हरिहर काका से कोई लगाव और प्रेम नहीं है। उनका उद्देश्य है कि हरिहर काका की ज़मीन को कैसे हड़पा जा सके। वह ज़मीन को पाने के लिए हर तरह की युक्ति का प्रयोग करते हैं। फिर चाहे वह धोखा देकर हो या शक्ति का प्रयोग करके हो। हरिहर काका इनकी स्वार्थलोलुपता के विरूद्ध खड़े होकर अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास करते हैं। इन सब में परिवार और ठाकुरबारी (मंदिर) के प्रति उनकी आस्था समाप्त हो जाती है। यह कहानी ग्रामीण जीवन के यर्थाथ को समाज के समक्ष बेनकाब करती है, जिनका मत है कि गाँवों की अपेक्षा शहरों के जीवन में स्वार्थलोलुपता ज्यादा विद्यमान है। आपसी रिश्तों में प्रेम के स्थान पर लालच का बढ़ना रिश्तों के खोखलेपन को दर्शाता है। समाज में प्रेम समाप्त हो रहा है। यह बहुत दुख की बात है।
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हरिहर काका' कहानी के द्वारा लेखक मिथिलेश्वर ने परिवारों में और धार्मिक स्थलों में बढ़ रही स्वार्थलोलुपता पर निशाना साधा है। इस कहानी के मुख्यपात्र हरिहर काका हैं। वह एक वृद्ध और निसंतान व्यक्ति हैं। अपना कहने के नाम पर उनके तीन भाई हैं। उनके भाईयों का परिवार भरा-पूरा परिवार है। हरिहर काका इन्हीं के साथ रहने में अपना सुख मानते हैं। मन को सुख देने के लिए ठाकुरबारी (मंदिर) है। हरिहर काका के जीवन में इन दोनों का विशेष महत्व है। परंतु इन्हीं दोनों ने उन्हें अपने स्वार्थ के लिए छला है। उन्हें हरिहर काका से कोई लगाव और प्रेम नहीं है। उनका उद्देश्य है कि हरिहर काका की ज़मीन को कैसे हड़पा जा सके। वह ज़मीन को पाने के लिए हर तरह की युक्ति का प्रयोग करते हैं। फिर चाहे वह धोखा देकर हो या शक्ति का प्रयोग करके हो। हरिहर काका इनकी स्वार्थलोलुपता के विरूद्ध खड़े होकर अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास करते हैं। इन सब में परिवार और ठाकुरबारी (मंदिर) के प्रति उनकी आस्था समाप्त हो जाती है। यह कहानी ग्रामीण जीवन के यर्थाथ को समाज के समक्ष बेनकाब करती है, जिनका मत है कि गाँवों की अपेक्षा शहरों के जीवन में स्वार्थलोलुपता ज्यादा विद्यमान है। आपसी रिश्तों में प्रेम के स्थान पर लालच का बढ़ना रिश्तों के खोखलेपन को दर्शाता है। समाज में प्रेम समाप्त हो रहा है। यह बहुत दुख की बात है।