वर्तमान समय में मानवता और सामाजिकता जैसे गुण धूमिल हो गए हैं l debate topic of 100-200 words
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कोविड 2020 : जब हो रहा है मानवता के साहस का इम्तिहान
AKOP GABRIELYAN
कोविड-19 की महामारी ने न केवल वैश्विक स्तर पर किसी महामारी से निपटने की मानवता की तैयारियों का इम्तिहान लिया है. बल्कि, इस महामारी ने तमाम देशों के बीच आपसी सहयोग और उत्तरदायित्व बांटने की क्षमता की परीक्षा भी ली है.
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कोविड-19 की महामारी की शुरुआत वर्ष 2019 के आख़िरी महीनों में हुई थी. और इसकी सबसे अधिक सक्रियता का दौरा मार्च से लेकर मई 2020 के दौरान देखा गया. उसके बाद से ये महामारी दुनिया के हर देश का इम्तिहान ले रही है. इसके क़हर से दुनिया का कोई भी देश नहीं बच सका है. इस महामारी ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अधिकारियों के लिए भी चुनौती पेश की है. इनमें से कई अधिकारियों और संस्थाओं को कोविड-19 से ठीक तरह से न निपट पाने के लिए भारी आलोचना का सामना भी करना पड़ा है. कोविड-19 की महामारी ने न केवल वैश्विक स्तर पर किसी महामारी से निपटने की मानवता की तैयारियों का इम्तिहान लिया है. बल्कि, इस महामारी ने तमाम देशों के बीच आपसी सहयोग और उत्तरदायित्व बांटने की क्षमता की परीक्षा भी ली है. कई देश इस महामारी के तेज़ी से हो रहे प्रसार को रोक पाने में असफल साबित हुए. यही नहीं, कोविड-19 की महामारी मानवता के साहस और धैर्य का भी इम्तिहान ले रही है. इस महामारी के कारण हमारी व्यवस्था की जो कमियां पहले से मौजूद थीं, वो और विकृत रूप में उभर कर सामने आईं. इसके अलावा कोविड-19 ने कई नई समस्याएं भी हमारे सामने पेश कीं. इससे भूमंडलीकरण और पूरी दुनिया के एक ग्लोबल विलेज में तब्दील होने की अवधारण का भी चुनौती दी है. इसके साथ-साथ कोविड-19 ने हमारी दुनिया की उठा-पटक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की वर्तमान व्यवस्था की तमाम कमज़ोरियों को भी उजागर कर दिया है.
कोविड-19 की महामारी ने न केवल वैश्विक स्तर पर किसी महामारी से निपटने की मानवता की तैयारियों का इम्तिहान लिया है. बल्कि, इस महामारी ने तमाम देशों के बीच आपसी सहयोग और उत्तरदायित्व बांटने की क्षमता की परीक्षा भी ली है.
जैसा कि मानव सभ्यता को अब पता है, कोविड-19 की महामारी कई चरणों से गुज़रते हुए इस मुकाम पर पहुंची है. पहले तो, इस महामारी की कई देशों ने पूरी तरह से अनदेखी की. इन देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चेतावनी के बावजूद, न तो इस महामारी को गंभीरता से लिया और न ही, उससे निपटने के लिए त्वरित गति से क़दम ही उठाए. इसके बाद, जो देश इस महामारी के शुरुआती चरण पर प्रभावित क्षेत्रों के भौगोलिक रूप से क़रीब थे, उन्होंने संक्रमण की रोकथाम के लिए अपनी सीमाओं को बंद करने का फ़ैसला किया. जबकि कई देश इसके बाद भी महामारी को लेकर दी जा रही चेतावनी को अनदेखा करते रहे. कई देशों में नए कोरोना वायरस के तेज़ी से और व्यापक संक्रमण के बावजूद, बहुत से अन्य देश ये स्वीकार करने को राज़ी नहीं थे कि ये महामारी उनके यहां पहुंचकर उनके देश की जनता को भी प्रभावति कर सकती है. कोविड-19 के ख़तरों को लेकर आधी अधूरी स्वीकार्यता की स्थिति में बदलाव तब आया, जब इस महामारी से तेज़ी से लोगों की मौत होने लगी. उस समय भी कोई एक रणनीति नहीं थी जिस पर तमाम देश सहमत हों कि कोविड-19 से कैसे निपटना है. हर देश अपने अपने तरीक़े से इस महामारी का सामना कर रहा था. अपनी सहूलत के हिसाब से संसाधनों का बंटवारा कर रहा था. यहां तक कि महामारी से निपटने के सामान्य नीति निर्धारण में भी, हर देश का रवैया दूसरों से अलग था. कोविड-19 की महामारी का उद्गम रहे चीन ने इससे निपटने के लिए बेहद सख़्त प्रतिबंध लगाए. कुछ हद तक चीन द्वारा उठाए गए ये क़दम सही भी थे. क्योंकि क्षेत्रीय स्तर पर जो परिस्थितियां थीं, उनके लिहाज़ से ये उपाय कारगर साबित हुए. लेकिन, यूरोपीय लोकतांत्रिक देशों और पूरे पश्चिमी गोलार्ध के देशों ने भी महामारी की रोकथाम के लिए कड़े क़दम उठाने की शुरुआत तो की. लेकिन, इन देशों की सरकारों ने ऐसा तब जाकर किया जब अपने देश की जनता के ऊपर लागू आधे-अधूरे उपायों और हल्के फुल्के क़दमों से अपेक्षित नतीजे सामने नहीं आए. उदाहरण के लिए, यूरोप में इटली ऐसा पहला देश था, जहां कोरोना वायरस का संक्रमण व्यापक रूप से फैला था. और इस महामारी के चलते इटली में बड़ी संख्या में लोगों की जान गई. इसके बाद इटली ने यूरोपीय देशों के लिए एक उदाहरण पेश करते हुए तुरंत ही कड़े क़दम उठाने शुरू किए, जिससे कि संक्रमण के प्रसार की रफ़्तार को कम किया जा सके. जैसा कि कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कोविड-19 की महामारी के मानवाधिकारों पर प्रभाव की बात करें, तो ये काफ़ी नकारात्मक रहा है. इनमें पारंपरिक रूप से लोकतांत्रिक माने जाने वाले यूरोपीय देश भी शामिल हैं. इन नकारात्मक प्रभावों के बावजूद, यूरोपीय संघ के अधिकतर बड़े देशों ने महामारी से निपटने के लिए वित्तीय और मानवाधिकारों के मसले पर आपसी सहयोग से काम करना शुरू कर दिया. जैसा कि पहले भी कहा गया कि कोविड-19 से निपटने का ऐसा कोई फ़ॉर्मूला नहीं था, जिसे हर देश में लागू किया जा सके. यूरोपीय संघ ने कोविड-19 के कारण पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए एक ख़रब यूरो की रक़म ख़र्च करने का एलान किया. इसके साथ साथ, यूरोपीय परिषद ने यूरोपीय देशों की सरकारों के लिए एक प्रैक्टिकल टूलकिट जारी की, जिसमें इस महामारी से निपटने के साथ साथ इन देशों को अपने यहां मानव अधिकारों, लोकतंत्र और क़ानून के राज की रक्षा करने के सुझाव दिए गए थे.
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